अथर्व वेद प्रथम खण्ड | Atharv Ved Pratham Khand
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
669
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गोपालप्रसाद कौशिक - Gopalprasad Kaushik
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३
जिनमे विचित्र विषयो का विशेष ज्ञान वर्णित है ।
राष्ट्र रक्षा और राज्यशासन प्रणाली के सम्बन्ध मे वैदिककाल
की जो प्रणाली प्राचीन समय मे प्रचलित थी वह श्राज भी उतनी ही
उपयोगी तथा हितकारी है इस सम्बन्ध मे अथवंबेद में भी कुछ मत्र
आये हँ जिनका अथं उपासा प्रक होने कै साथी देश भक्ति पूर्ण और
शासन प्रणाली को प्रकट करने वाला भी है ।
सभाच मासमिति श्चावता प्रजापते दुहितरौ सविदाने ।
येना सगच्छा उपमास शिक्षात् चारु-बदानि पितर. सगतेषु ॥
--श्रय भ्र ७1१२
सभा श्रौर समिति ये दोनो प्रजापति की पुत्रियाँ हैं ( यह इस
प्रकार है जैसे भारत की शासन प्रणाली मे लोक सभा दो और राज
सभा दो ससस्या हैं, ये दोनो प्रजापति राष्ट्रपति की आज्ञा द्वारा बनती
है इम लिए पुत्िियो का नाम देकर रूपक बताया है ) ये दोनो सत्य
ज्ञान (देश की वास्तविक स्थिति जनता को सद् इच्छा का ज्ञान) राष्ट्रा-
ध्यक्ष को देती है। जिध सभासद ( एम पी ) से मैं मिलू वह मुझे
सत्यज्ञान दे । हे पितर ( रक्षक सदस्यों ) में सभाओ मे अच्छा भाषण
ही करूगा।
अथवे वेद के उपरोक्त मत्ते दवारा आज की प्रजातत्र शासन
प्रणाली का स्पष्ट विवरण ज्ञात होता है । सभासदस्यो (एम पी )
के कर्तव्य की ओर भी इंगित किया गया है । एवम राष्ट्रध्यक्ष शासन
सचालक का कतंव्य भी बताया गया है।
राष्ट्रमरध्यक्ष के विषय में विचार प्रकट करने वाला एक और
मत्र भी श्राया है जिससे शासन में स्थायित्व दृढता और न्याय पूर्वक
राज्य सचालन तथा राष्ट्र की रक्षा का विवरण प्रकट होता दै ।--
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