लघुसिद्धान्तकौमुदी भाग - 2 | Laghusiddhantakaumudi Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
363
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हल्सन्धि-प्रकरण १३
वराऽसिद्धम्” परिभाषा के अनुसार त्रिपादी होने से असिद्ध है। अतः तच् + शिवः'- ।
देसी स्थिति हो जाने पर अट् इकार परे होने के कारण '७६-शस्छोषटि' से घ्य् चकार
से पर शकार के स्थान भें विकल्प से छकार आदेश होगा मौर रूप वनेगा-तच् छिवः =
तच्छिवः । अभावे पक्ष में तच् शिवः रूप ही रहेगा ।
१०. तन्मात्रम्
मूररूप-- तद् 1 मात्रम् । इस अवस्था मे अनुनासिक मकारादि भात्र' प्रत्यय परे
होन के कारण प्रत्यये भाषायां नित्यम्* वातिक से पदान्त यर् दकारको अनुनासिक
तकार हो जावेगा और रूप वनेगा--^तन् मात्रम् = तन्माम् । ध्यान रह कि यहाँ
तदस्य परिमाणम्” इस अथं मे श्रमणे दयसज्-दध्नन्-मात्रचः' ( ५।२।३७ } सूत्र से
माचच्' प्रत्यय हुआ है
टिप्पणी-- चिन्मयम्' ( चिद् + मयम् ) का रूप भी इसी प्रकार सिद्ध होगा । यहाँ
“चिदेव'-इस अर्थ में 'तत्प्रक्ृतवचने मयदु' ( ५४२१ ) से मयद् प्रत्यय हुमा ह 1
११. तरुख्यः
मूलरूप-- तद् + ल्यः के आदि लकार के परे होने के कारण ६९-तोि' से
तवगं दकार के स्थान में परक्कार का सवणे लकार ही आदेश होगा, क्योकि दोनों ही
दल्नस्थानीय १ हतस् কম: _ বন |
टिप्पणी লিলা লিজ্বি' ( विदान् + लिखति ) का रूप भी इसी प्रकार सिद्ध '
हीगा, केवल अनुनासिक होने के कारण नकार क स्थान में अनुनासिक छकार आदेश
होगा ।
१२. न् पाहि (न पादे, नं पाहि, न्: पाहि, नन् पाहि )
द
मलरूप-- नृन् ¬+ पाहि । यहाँ पर पकार परे होने के कारण *९७-नन् पै से नन्
के अन्त्य नकार के स्थान में विकल्प से 'र आदेश हो गया ओर रूप वना-- नूर
पाहि । फिर अनुनासिक ओर अनुस्वार होकर नू रु पाहि' ओर करु र पाहि रूप बनेंगे
^ मे उकार की इत्संज्ञा होने के कारण केवल रकार ही शेप रह् जाता है । उसके
स्थान में ९२-खरवसानयोविसजंनीयः' से विसगं आदेश हो गया मौर জন वने--नुः
पादि' तथा ^ नू : पाहि । यहां भी ^९ ६-विसर्जनीयस्य सः से विसर्गो के स्थान मेँ सकार
प्राप्त था परन्तु पवगं पकार परे होने के कारण *९८-कुप्वोः---क~-पौ च से उसका वाध
होकर उपध्मानीय अदेश होगा ओर रूप घनेगा-नृ पाहि, नृ पाहि । पक्षमे विसगं
भी रहेंगे । ^5' भी विकल्प से होता है, अतः अभाव पक्ष मेँ यथावत् रूप भी रहेगा--
नृन् पाहि ।*२
१. खृतुलसानां दन्ताः ।
२. विशेष विवरण के लिए पंद-संख्या ७ ओर २९ की प्रयोग-सिद्धि देखिये ।
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