जैन शिलालेख संग्रह भाग - 5 | Jain Shilalekha Sangrah Bhag - 5

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Jain Shilalekha Sangrah Bhag - 5  by विद्याधर जोहरापुरकर- Vidyadhar Joharapurkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना १७ [१] महाराष्ट्र के परभणी जिले में पूर्णा नदी के तीर पर उखछद ग्राम है, यहाँ के नेमिनाथमन्दिर की जिनमूर्तियों के पादपीठों पर २३ लेख मिले हैँ इन में पहले सात लेखों में उल्लिखित भट्टारक उत्तर भारत के हैं . अतः ये मूर्तियां उत्तर भारत के किसी स्यान में प्रतिष्टित हई थीं तथा वाद मे उखल्द लायी गयी ऐसा प्रतीत होता है, इन का समय सं० १२७२ से सं० १५४८ तक काह! इन में अन्तिम सं० १५४८ का लेख तो ४१ मूर्तियों के पादपीठों पर हैं ( इस झिलालेखसंग्रह के चतुर्थ भाग में बताया गया है कि यही लेख नागपुर के विभिन्‍न मन्दिरों में स्थित ७७ मूर्तियों के पादपोठों पर हैं )। बाद के सोलह लेख महाराष्ट्र के ही कारंजा व लातूर इन दो स्थानों के भद्वारकों से सम्बन्धित हैं तथा अधिकतर सोलह॒वीं-सत्र- हवीं सदी के हैं । [२] मध्यप्रदेश के उत्तर कोने में स्थित ग्वालियर के किले में २५ लेख प्राप्त हुए हैं । इन से पन्द्रहवींसोछह॒वीं सदी के ग्वालियर के राजाओं, भट्टारकों तथा श्रावक्रों के विषय में काफी जानकारी मिलती हैं । [३] मब्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित सोनागिरि पहाड़ी के-विभिन्‍्न मन्दिरों में ५२ लेख प्राप्त हुए हैं। इन में से एक सातवीं सदी का और छह बारहवीं से चौदहवीं सदी तक के हैँ । अतः पं० नाथूरामजी प्रेमो ने इस स्थान की प्राचीनता के वारे में सन्देह प्रकट करते हुए जो विचार प्रकट किये थे ( जैन साहित्य और इतिहास पृ० ४३८ ) उन में अब सुधार करना होगा | हाँ, सिद्धक्षेत्र के रूप में इस को प्रसिद्धि का इन प्राचीनतर लेखों से पता नहीं चलता । इस स्थान के भट्टारक गोपाचल पट्ठ के अधि- कारी कहलाते ये | उन के विपय में आगे अधिक स्पष्टीकरण दिया है । [४] उत्तरप्रदेश के दक्षिण-पश्चिम कोने में झाँसो जिले में बेतवा नदो के तीर पर स्थित देवगढ़ एक प्राचीन स्थान हैं। इस लेखसंग्रह के दूसरे भाग में यहाँ का नोवीं सदी का एक लेख है तथा तोसरे भाग में पन्द्रहवीं सदी के दो लेख हैं। प्रस्तुत संक्रकन में यहाँ से प्राप्त ९० लेखों का विव-




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