बुन्देलखण्ड की लोक- चित्रकला | Bundelkhand Ki Lok - Chitrakala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : बुन्देलखण्ड की लोक- चित्रकला  - Bundelkhand Ki Lok - Chitrakala

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. श्रीमती मधु श्रीवास्तव - Dr. Shrimati Madhu Shrivastav

Add Infomation About. Dr. Shrimati Madhu Shrivastav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दशार्ण (धसान), शुक्तमती (केन), नर्मदा की उपरली घाटी और पंचमढ़ी से अमरकंटक तक पर्वत का भाग सम्मिलित है | बुन्देलखण्ड के भौतिक शोधों के आधार पर सीमा निर्धारण निम्न प्रकार किया गया - ''वह क्षेत्र जो उत्तर में यमुना, दक्षिण में विन्ध्य, प्लेटों की श्रेणियों, उत्तर-पश्चिम में चम्बल और दक्षिण-पूर्व में पन्ना व अजयगढ़ श्रेणियों से घिरा हुआ है, बुन्देलखण्ड के नाम से जाना जाता है । उसमें उत्तर प्रदेश के जिले हैं - जालौन, झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा और बांदा तथा मध्य प्रदेश के चार जिले - दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्‍ना के अलावा उत्तर-प्रदेश में भिण्ड जिले की लहर और ग्वालियर जिले की भाण्डेर तहसीलें भी सम्मिलित हैं (इण्डिया : ए रीजनल ज्याग्रफी, सं० आर0 एल0 सिंह, 1971 पृ0 597) जनपदों का स्वरूप इकाई के रूप में मानने पर वहां के निवासियों की सभ्यता संस्कृति एवं संस्कारों की समानता देखने को मिलती है। जनपदीय चेतना का आरम्भ रामायण और महाभारत काल से माना जाता है। उनमें वर्णित चेदि देश का स्वरूप वर्तमान बुन्देलखण्ड ही है। पार्जिटर ने मार्कण्डेय पुराण के अंग्रजी अनुवाद में चेदि देश व बुन्देलखण्ड का समाकलन करते हुये लिखा है- “'चेदि देश उत्तर में यमुना के दक्षिणी तट से दक्षिण में मालवा के पठार और बुन्देलखण्ड की पहाड़ियों तक तथा दक्षिण पूर्व में बहने वाली कार्वी नदी से उत्तर-पश्चम में चम्बल नदी तक विस्तृत प्रदेश का नाम था ।'' डा0 वी0 वी0 मिराशी के अनुसार “मध्य काल में उक्त विस्तार नर्मदा तट तक हो गया था।” इस सीमांकन का आधार पूर्णतया सांस्कृतिक है। किन्तु उस समय सीमा का आधार युद्ध भी होते थे इस कारण वर्णित सीमांकन को विश्वसनीय नही माना गया। जनपदों के पतन के पश्चात सांस्कृतिक आधार का स्थान राजनीतिक आधार ने ले लिया। चन्देलकाल में 'जेजाक भुक्ति' की सीमायें वर्तमान बुन्देलखण्ड से विस्तृत थी। विभिन्‍न लोक-संस्कृति के क्षेत्र चन्देल राजाओं के आधीन थे, जिसमें बघेली, ब्रज, कन्नौजी जैसी क्षेत्रीय भाषायें बोली जातीं थी | इस कारण उन सीमाओं को बुन्देलखण्ड की सीमा नही माना जा सकता था, इसका समर्थन अनेक इतिहासकारों ने भी किया दीवान प्रतिपाल सिंह लिखित 'बुन्देलखण्ड का इतिहास' के प्रथम भाग के अनुसार-''पूर्व में टोंस और सोन नदियां अथवा बघेल-खण्ड या रीवां राज्य है तथा बनारस के निकट बुन्देला नाले तक सिलसिला चला गया है। पश्चिम में बेतवा, सिंध और चम्बल नदियां विन्ध्याचल श्रेणी तथा मालवा, सिंधिया का ग्वालियर राज्य और भोपाल राज्य हैं तथा पूर्वी मालवा इसी राज्य में आता नकद कु हि मे || । |] है 1 ं 0 के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now