जैन दर्शन की रूपरेखा | Jain Darshan Ki Ruparekha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्या जैन धर्म बौद्ध धर्म की एक शासा है ? । ৪
है, इसलिए कभी-कन्ती कहा जाता ই कि जैनों ने औद्धों का अनुकरण किया है।
परन्तु थोड़ा विचार करने से लगता है कि ऐसा संधव नहीं .था। जनों के काल्यक .
में: उत्सपिणी और अवसपिणी के छह-छह आरे हैं। इस कालचक को बोड़ों के
उस काल-विभाजन से प्राप्त करना असंभव है जिसमें बार महाकल्प और अस्सी
लघकल्प माने गये हैं। बौद्धों ने अपना यहूं कालचक्र ब्राह्मणी हिन्दू धर्ष के थुगों
एवं कल्पो कं आधार पर बनाया होमा । जैनों पर ब्रह्मा के अहोरात़ तथां मन्यन्तर
के हिन्दू आख्यानों का प्रभाव पड़ा होगा । जो भी हो, जैन कारचक बौठ़ों से
प्रभावित नहीं जान पड़ता ।
दोनों ही सम्प्रदाय अपने कुछ विचारों के लिए हिन्दू धर्म के ऋणी हैं, इस
बात से एणेतः इनकार नहीं किया जा सकता । उदाहरण के लिए, बौधायनं
धर्मपुत्र मे दिये मये पषध्रत ह : अहिसा, सुनुत, अस्तेय, ब्रह्चयं ओर अपरिग्रह ।
इनमें से प्रथम चार ब्रत वही हैं जिनका कि जैन साधुओं को पालन करना पड़ता
है और इनका क्रम भी उसी प्रकार है। बौद्ध भिक्षुओं को भी इन्हीं शीलों का
पालन करना पड़ता है, परन्तु उनकी सूची में दूसरे स्थान पर सत्य नहीं है। मैक्स-
मूलर, बूलर तथा केने ने इन तीनों महान धर्मों के साहित्य में उपलब्ध संन््यासियों
के कंतंव्यों की तुलनात्मक छानबीन की है, और ये भी इसी परिणाम पर
पहुंचे हैं ।
' हिन्दुगौ के संन्यास-धमं अथवा उनकं संन्यासियो के कर्तन्य ओौर बौद्ध तथा
जैन भिक्षुओं के लिए निर्धारित व्रतो मे ओ अद्भूत समानता है, उससे यही. परि-
णाम निकलता है किं भिक्षु संघ के लिए नियम बनते समय जनो ने बौद्धों का
अनुकरण नहीं किया है। एक तरफ हम हिन्दू संन्यास-धमं तवा जन सम्प्रदाय क
नियमों में समानता देखते हैं, तो दूसरी तरफ हिन्दू संन््यासियों तथा बौद्ध भिक्ष॒ओं
के लिए निर्धारित नियमों में कुछ अंतर भी देखते हैं। इन सबूतों से हमारी इस
मान्यता को समर्थन मिलता है कि जैन सम्प्रदाय मात्र बौद्ध सम्प्रदाय की एक
शाखा नहीं था। यहां हम हिन्दुओं के संन्यास-धर्म तथा जैन सम्प्रदाय के बीच की
कुछ अद्भुत समानताओं का उल्लेख करेंगे। चूंकि हिन्दू परम्परा की प्राचीसता
निविवाद है, और बुद्ध अपने सम्प्रदाय के संस्थापक एवं महावीर के समकालीन
थे, और चूंकि महावीर अपने सम्प्रदाय के केवल एक सुधारक थे, इसलिए विद्वान
इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि यदि हमें 'ऋण' की ही चर्चा करनी है, तो संभव यही
है कि जैन सम्प्रदाय बौद्ध सम्प्रदाय का ऋणी न होकर ये दोनों ही सम्प्रदाय हिन्दू
धर्म के ऋणी हैं । संन्यासियों के छिए निर्धारित कुछ नियम नीचे दिये जा रहे हैं:
: संन्यासी को अपने पास कुछ भी एकत्न नहीं करना चाहिए।”* जैत तंथा
17. “गौतम' : 11.11; दुलनीय --“बौधाबन' : 1], 6, 11, 16
User Reviews
No Reviews | Add Yours...