संसार का इतिहास | Sansar Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. संप्रय : जीवित अतीत का दूंसरां तत्त्व है समप्‌ । हम समय के गुजर जाने की बात कहा करते हैं । असल में समय कभी नहीं गुजरता । यह सदा मौजुद रहता है । लोग तथा घटनाएँ ही ग्रुज- रती हैं) इसलिए समग्र के ग्रुजर जाने का मापदण्ड . केवल वे घटनाएं हैं, जिनसे हम प्रभावित हुए हैं । उच्चतर माध्यमिक स्कूलों के विद्यार्थी प्राय: अपने . विद्यार्थी-जीवन के किसी निजी अनुभव को इस रूप में याद रखते हैं कि वह उनके स्कूल-जीवन के झमुक वर्ष में, अथवा स्कूल में प्रवेश के पहले या बाद में हुम्ना था । শবে सारा समय दो भागों में विभाजित किया जा सकता है. पहला पापं तिष्धासिक (वट समय जद लिखित अभिलेख नहीं रखे जाते थे); दूसरा, ऐति- हासिक (लिखने के आविष्कारों के बाद का समय) । मानव को पृथ्वी पर जितना समय हुआ, उसकी तुलना में मानव-जाति के परिवर्तत का ऐतिहासिक समय एक क्षण के समान है । जब मनुष्य ने लिखना सीखा, ततव से उसकी उन्नति वहत हुई दै, लेकिन इस उन्नति की नींव प्राग तिहासिके कालके मन्द परन्तु महत्त्वपूर्ण कदमों से ही पड़ी थी । प्रारम्भिक जातियाँ प्राकृतिक संसार की असा- घारण घटनाओं के द्वारा समय की पहचान किया करती थीं। बाढ़ें, आग, बर्फीलि तुफान, अनावृष्टि और ग्रहण विशेष घटनाएँ थीं । प्रकृति की ओर से मनुष्य को यह जानने की इकाई मिल गई थी कि कितना समय गुजर चुका था। भिश्चवासियों ने सूर्य के नियमित रूप से होने वाले उदय और अस्त को देखा; उन्होंने प्रकाशमय तथा अन्धकारमय अ्रवधियों का लेखा किया । आज हम जानते हैं कि ये क्रमिक अ्न्धकार और प्रकाश पृथ्वी के अपने अक्ष पर परि- क्रमा करने से होंते हैं। श्रमरीकतन झ्रादिवासी प्रत्येक अट्टाईस दिनों के बाद पूर्णिमा का उत्सव मनाया करते थे । अब इन्होंने समय मापने की एक अधिक बड़ी इकाई को प्राप्त कर लिया, वह इकाई थी “মুল? আআ महीना । कुछ भिन्‍न तरीके से, हम आज भी प्रकृति के ग्राधार पर॒ किया गया समय का विभाजन ही प्रयोग में लाते हैं, जिसे दिन, महीना और वर्ष कहते हैं । प्राचीन रोम में घटनाओं का समय रोम शहर की स्थापना के समय से नापा जाता था। इस माप को हो लेटिन भाषा में एब उरबे कौन्डिटा (ए० गू० सी०) कहते हैं । यहूदी लोग घटित बातों की तिथि का अंकन शासन-कर्तता के नाम तथा वर्ष से करते थे। मुसलमान अपने धर्म के प्रारम्भ होने के वाद या पहले के हिसाब से समय नसापते हैं। फिर भी, श्राज करीब-करीब संपूर्ण विश्व ने भ्रपनी घट- नाथों का लेखा रखने के लिए पश्चिमी जगत के तरीके को अपनाया हुआ है । यह तरीका ईसा के जन्म के समय का विभाजन करता है। ईसा के जन्म से पहले के समय को लैटिन के शब्दों ए० डी० (ई० प० लोग स्थान, समय तथा विचार और आदर्श अमरीकी संस्क्ेति के महत्त्वपूर्ण अवयव हैं | या ईसा पश्चात्‌ ) लिखते हैं । जो घटनाएँ ईसा के जन्म से पहले की हैं उन्हें 'बी० सी०' (ईस्वी पूवं) लगा कर सूचित किया जाता है। उदाहरणा्थ, जूलियस বীজ की मृत्यु ४४ ई० দুল में हुई थी । संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना १६४५ ई० प० में हुई । समय-निर्धारण कौ पद्धति को काल-क्रभ-पद्धति (क्रौनोलौजी) कहते हैं । ईसाई कालक्रम-पद्धति जैसी व्यापक क्षेत्र में स्वीकृत प्रणाली से, जो घटनाओं को ईसा पूर्व और ईसा पश्चात्‌ के कालों में रखती है, . इतिहासकारों के लिए अतीत के अभिलेखों को व्यवस्थित करता आसान हो जाता है।




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