ध्वन्यालोक : एक अध्ययन | Dhwanyalok -Ek Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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No Information available about थानेशचन्द्र उप्रती -Thaneshchandra Uprati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११ )
का अभिव्यञ्जक है ।
परावाड मूलचक्रस्था पदयन्ती नाभिसंस्थिता |
हृदिस्था सध्यमा ज्ञेया वेखरी कण्ठदेशगा॥
वेखर्याहिकृतों नाद: परश्रवणगोचर: !
मध्यमा कृतो नादः स्फोटन्यञ्जक उच्यते । (वा० ब्र० का०)
विनाल विद्व के प्रति जीव में अभिव्यक्त अनादि अक्षररूपा इस वाणी कीः
थोड़े बब्दों में कहानी इस प्रकार है--
सक्रल कला सम्पन्न सच्चिदानन्दं परम विभु परमेश्वर की जब अपने ही
अन्तगंत लीन इस जगत् के सुप्टि की इच्छा हुई तो उसमें स्पन्दन हुआ, जिसे विन्दु
कहते हैं। यह स्पन्दन हीं परमेश्वर की गवति है ओर यह् विन्दु, जिषे नाद कटति है
यही नाद गब्द-ब्रह्म है। अर्थात् परमेश्वर की शक्ति के विकसित रूप ये विन्दु और
नाद है--
सच्धिदानन्दविभवात् सकलात् परमेश्वरात् ।
श्रासीच्छदितस्ततो विन्दुविन्दोनदि समुद्भवः ॥
यही सूक्ष्म नाद नामक जब्द-ब्रह्म परावाणी के नाम से शास्त्रों में वणित
है । इसी परावाणी से अपरा-पश्यन्ती मधथ्यमा एवं बैखरी वाणी की उत्पत्ति होती
है। इसी सुक्ष्म नादरूपा परावाणी का विवंत यह जगत है। ऐसा शब्द देववादी
आचाये भत् हरि मानते है । जैसा कि उन्होने कहा है---
श्रमाविनिधन ब्रह्य शब्दतत्त्वं यदक्षरम् ।
विवर्ततेऽ्थभावेन प्रक्रिया जगतो यतः ॥
अतः परानाद-रूपा क्रिया से उत्तरोत्तर वंखरी रूप में भभिव्यक्त यह ध्वनि
ही नदद । यही अर्थं का अभिव्यञ्जक होने से स्फोट है वस वैय्याकरणो ने केवल
इसी अभिव्यञ्जक शब्द के लिए ध्वनि शब्द का प्रयोग कियाह। इमी अभिव्यज्जकत्व
के सादृद्य ते पुनः काव्यतच्ननों ने, (जिनमे अनन्दवर्धनाचयं प्रमुख भी सम्मि-
लित हैं) केवल अभिव्यञजक - णब्द में ही ध्वनि शब्द का व्यवहार नहीं किया,
अपितु शब्द, अर्थ, व्यज्ज्जना व्यापार, व्यड ग्यार्थ प्रधान काव्य, इन सबको व्वनि भब्द
से कहा है। जिसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है---
ध्चनति, ध्चनर्यात वा ४४ स:, व्यञ्जक: बाच्द., अर्थेइच ध्वनि:। লন
अनेनेति शब्दार्थयः व्यञ्जना व्यापारोषपि ध्वनि:। ध्वन्यते इति व्यडः ग्यरसादिर-
लंकार वस्तु च ध्वनिः ध्वन्यते श्रस्मिन् इति ध्वनिः काव्यम्
इस प्रकार ध्वनि घद्द का प्रयोग पाँच भिन्न-भिन्न परन्तु परस्पर सम्ब.
अर्था मे हुआा है--
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