हिंदी के आदि कालीन काव्य रूपों का अध्ययन | Hindi Ke Aadi Kaaliin Kaavya Roopon KaAadhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जध्याव « | ভর. বরাত ০০ « জট এআ সি পে টে অপরিচিত १हन्दी साद्य के जआदकाल की पृष्ठभीम काल-वमाणन व नामकरण हन्दी प्ताहित्य के दसवीं ते पौठदवी फ्राब्दी के अआरीम्फ रचनाकात को इतहासकारों ने आदिकात कहा हे । इन पार सो पर्णो के अन्तत एक ही तमय तथा पररस्कीत्यों प्र ¶ष्ली गई ¶न्दी की गतापि रघनागौँ म इतनी अपथ वीमनन्‍नतवा है, जो कसी के 1लए भरी कौठहल का ¶वषय बन तकता है | 1हन्दी ताहहत्य का यह उद्भव काल या आराम्फ ` काल अत्यन्त ¶पवादास्पद होते हुए भी स्व्यं भ अत्या मह त्वपुर्णं অয তে, + ¶विभन्नता चतू्ुूषी त्य ते दष्ट गोचर हो रही थी । इस काल में एक ओर संतत के प्रतभाणाती विद्वान उत्पन्न हुए, इन विद्वानों ने अलंकृत काप्य परम्परा्रन्य पद्यौ के अनुतार अपने काव्य का पुनन किया | उनकी ये रचनाएँ अलैकृत জাত परम्परा के सर्पश्रेष्ठ 'श्वर पर पहुंच गई थीं ।




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