शिकार और जीवन | Shikaar Aur Jeevan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिकार और जीवन 2. 13 इसी क्रम से मैंने भी सोचा था। | . प॑ती ने अपना सिर घर की ओर उठाकर कहा, “पर श्रव श्रपनी माँ से यह घूमने की बात न कह बैठना । ओ्रौरतें प्रायः जीवनभर नहीं सम सकतीं कि आदमी को इस प्रकार का घूमना क्‍यों अ्रच्छा लगता है ? मैंने उसे नहीं पता चलने दिया कि तुम यहाँ नहीं थे । उसने पूछा था कि, 'जोडी कहाँ है ?' मैंने उसे उत्तर दिया था, श्रोह ! समझा, यहीं कहीं होगा ? ” उसने एक आँख ऋपकाई श्र जोडी ने भी उसी तरह पलक भपका- कर जवाब दिया “शान्ति बनाए रखने के नाम पर घरके श्रादमियों को मिलकर ही रहना चाहिए। जाओ, अब तुम अपनी माँ के लिए ईंधत का एक बड़ा गट्ठर उठा ले जाग्रो ।” द जोडी ने गट्ठर बनाया और घर की ओर जल्दी-जल्दी ले चला। उसकी माँ अँगीठी पर रुकी हुई थी। पकती हुई चीज़ों में से मसालों की उठने वाली गंध ने नाक की राह उसके भ्रन्दर घुसकर ज॑ंसे उसे भूख से कमज़ोर बना दिया। वह पूछ बैठा, “क्या यह आलुझों का मीठा हल॒वा तो नहीं है, माँ १” “हाँ, वही है। पर श्रब तुम दोनों ज़्यादा देर मत लगाओ। खाना तयार है । जल्दी ही बंठ जाओ ।' उसने लकड़ियाँ पेटी में उलटाई और जल्दी ही उन्हें ठीक-ठाक कर. दिया । उधर उसका पिता ट्क्सीगायको दुह्‌ रहा था । जोडी पास जाकर बोला, “माँ कहती है, काम समाप्त करके जल्दी आओ। क्या सीजर को भी दाना डाल आाऊँ ?” मैं उसे खिला चुका हूँ क्योंकि उस बेचारे को भूख लगी थी।” वह कमर सीधी करके उस तिपाये स्टूल पर से खड़ा हुआ और फिर बोला, “जाओ, यह दूध ले जाओ । और आज इसे गिराना या खिंडाना नहीं, जैसे कल गिरातेगए थे! धीरे-धीरे जाना । | तब वह गाय से अलग होकर खूंटे तक गया, जहाँ অল্ঞভা অগা ভক্সা था। वहीं से उसने गाय को पुकारा, “ट्रिक्सी ! इधर-इधर !” गाय फकी




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