रस-छन्दालंकार | Ras Chandalankaar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : रस-छन्दालंकार  - Ras Chandalankaar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' Ram Shankar Shukk ' Rasal ' - Pt. Ramshankar Shukk ' Rasal '

Add Infomation About. Ram Shankar Shukk Rasal Pt. Ramshankar Shukk Rasal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अध्याय ३ ] द [ रसन-न्दालं इसी प्रकार नायिका की श्रोरसे भौ वियोग का बहुत विशद्‌ वरुनः हिन्दी-कान्य में मिलता हैं । जेमे :- ৪ हा रघुबीर ! देव राघुराया, केहि अपराध बिसारेहु दाया ॥ >< ৯৫ > जेहि विधि कपट कुरङ् सग, धाइ गये श्रीराम } सोद छबि सीता राखि उर, जपति रहति नित लाम ॥ > ১৮৫. क उप इसमे जानकी श्रालम्बन, राम के प्रति उनकी प्रीति स्थायी भावः. ` | विषाद सश्ारी-माव, नाम-स्मरण, स्मृति, विलाप अनुमाव आदि ই). ` ` ~$ हास्य-रसः-- किसी, ब्यक्ति या वस्तु की असाधारण विक्त आकृति, विचित्र वेश-भूषा, आचार-व्यवहार आदि को देखकर मन में जो विनोद का भाव उठता है उसे हास्य कहते हैं । यही हास्य विभाव, ` अनुभाव और संचारी से पुष्ट होकर रसत्व को प्राप्त होता दै) इसका स्थायी भाव द्वास हे, आलम्बन इसका विकृत आकृति वाला व्यक्ति या पदार्थ है। इसके उद्दधीपन विभाव में विचित्र बातें और चेष्टायें आदि आती हैं। इसी के साथ हास्य का समाज विचित्र वेश-मृष्ा आदि इसके बाहरी उद्दौयन हैं। इसके आश्रय में हँसी, मुसकान, सज़ल-नेत् अनुभाव के रूप में रहते हैं। द॒र्ष, स्मृति, अवहित्थ्य आदि इसके संचारी- भाव होते हैं। बहुधा इसके आज्म्बन का वर्णन ही इसके लिए पर्य्याप्त होता है | यथा :--- द तात कही तुम बात सही, इनके सम दूसर रूप न आजू $ ` सन्दर रूप भयानक आनन, कानन लौ विकटानन साज्‌+#




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now