हिन्दी जैन - भक्ति काव्य और कवि | Hindi Jain-bhakti Kavya Aur Kavi

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Hindi Jain-bhakti Kavya Aur Kavi by प्रेमसागर जैन - Prem Sagar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ हिन्दी जेन मक्ति-काभ्य ओरं कवि भगवतीदासोका सहीोकही रेखा-जोखा मिला पाना आसान नही ह । अआनन्दघनो- की भी कमी नहीं थी। उनमे जेनमरमी आनन्दघन पहुचानमे आ गयेहै, एसा विखवास-सा होता है । उपाध्याय जयसागरपर लिखते समय, पहले पैराग्राफमे तीन जयसागरोका उल्छेख किया, , किन्तु लिखा केवल उपाध्यायजीपर ही, अव- रिष्ट दोको बचाकर निकर गया, या भाग गया भागना पडा, क्योकि उस समय दुसङ्-तीसरे जयसागरके साथ मेरा प्रामाणिकं सम्बन्ध स्थापित नही हो सका था। दुसरे जयसागर काष्टासघके नन्दीतटगच्छमे हए थे। उनकी गुरु- परम्परा इस प्रकार थी ~ सोमकीति, विजयसेन, यश कीति, उदयेन, त्रिभुवन. कीति, ओर रत्नभूषण । रत्नभूषण ही जयसागरफे गुरु थे । उनका समय वि° सं° १६७४ माना जाता ह । उन्होने सस्कृतमे 'पादर्वपचकल्याणक' ओर हिन्दीमे ज्येष्ठ जिनवर॒पूजा, विमलपुराण', “रत्नभूषण स्तुति” तथा 'तीर्थनयमालछा की रचना कौ । इसी “विमलरूपुराण से सिद्ध है कि आचार्य सोमकीतिने गुजरातके सुल्तान फोरोजशाहके समक्ष आकाशगमनका चमत्कार दिखाया था। तीसरे जयसागरको ब्रह्म जयसागर कहते है! वे अठारहवी शताब्दीके प्रथम पादमे हुए है । उतका सम्बन्ध मूलसंघ, सरस्वतीगच्छ, बलात्कारगणकी सूरतशाखासे था। उनके गुरु मेंस्चन्दका समय वि० सं० १७२२-१७३२ सिद्ध है। ब्रह्म जयसागर हिन्दीके सामर्थ्यवान्‌ कवि थे। उन्होने 'सीताहरण', 'अनिरुद्धहरण' और सगर चरित्र की रचना की । तीनो ही प्रबन्धकाव्य है। उनका कथानक आकर्षक हैं, सम्बन्धनिर्वाह पूर्ण हुआ है। इसी प्रकार एक ही नामके दो-दो तो कई कवि हुए। यथास्थान उनका विश्लेषण है । इस ग्रन्थमे उन रचनाओको छोडनेका प्रयास किया गया है, जिनपर गठित विवादके मध्यसे में किसी ठोक परिणामपर नही पहुँच पाया हूँ । ऐसा ही एक कान्य अध्यात्म सवयाः हे । यह दि० जैन मन्दिर ठोलियान, जयपुरके गुटका न० १२७मे सकलित हैं। इसमे १०१ पद्च है। डॉ० कस्त्रचन्द कासलीवाल इस कृतिको पाण्डे रूपचन्दकी रचना मानते है । उनका आधार है अन्तमे लिखा हुआ, “इति श्रौ अध्यात्म रूपचन्दङृत कवित्त समाप्त ।' किन्तु रूपचन्द नामके चार कवि हुए, जिनसे दोका सम्बन्ध 'अध्यात्म'से था ही। वें दोनो समकालीन थे। एक थे पाण्डे रूपचन्द | उनकी शिक्षा-दीक्षा बनारसमे हुई थी। उच्च- कोटिके विद्वान थे। कवि बनारसीदासके अध्यात्म-सम्बन्धी भ्रमका निवारण- उन्होने किया था। वे हिन्दीके ख्यातिप्राप्त कवि थे। किन्तु उनकी रचनाओं और अध्यात्म सवेया'की शैलीमे नितान्त पार्थक्य है । इसके अतिरिक्त पाण्डे




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