हिन्दी और तेलुगू के मध्यकालीन राम - साहित्यों का तुलनात्मक अनुशीलन | Hindi Aur Telugu Ke Madhyakalin Ram - Sahityon Ka Tulanatmak Anushilan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
171 MB
कुल पष्ठ :
497
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चावलि सूर्यनारायण मूर्ति - Chawli Suryanarayan Murti
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand).. जाती-है। किंसीः मानव समुदाय की: सभ्यता का' स्वरूप उसके आंतरिक
भमिका
७०७
भारत एक ऐसा देश है जिसमें विशिष्ट साहित्य सम्पस्त चौदह प्रधान
भाषाएं व्यवहृत होती हैं जिनके साहित्यों में वह भारतीय संस्कृति प्रतिबिबित
है जो वेदकाल से लेकर अद्यावधि. अविच्छिन्न रूप से अपने परम्परागत विशिष्ट
दृष्टिकोण से जन मानस को प्रभावित करती आयी है और विश्व के इतिहास
में अपना विशिष्ट स्थान बनाए हृए है । यही - संसृति भारत की विभिन्न भापा
तथा आचार-वैमवोपेत विविधता में एकता व॒ अभिन्नता का ओंतस्सूत्र बनी
है जो भारत की: व्यष्टि और सम्रष्टि के जीवन में परिलक्षित होता है।
साधारणत: यह कहा जाता है कि भारत अनेक संस्कृतियों और समभ्यताभों का
देश है जिसमें अब भावनात्यक एकीकरण स्थापित कर उसे सुदृढ़ राष्ट्र बनाने की
आवश्यकता है.। यह कथन यद्यपि ऊपरी तौर से सत्य और सही जान पड़ता है
किन्तु आंतरिक रूप से भ्रममूलक है.जिसके मूल में राजनीतिक दाँव पंच काम
करते हैं ।
संस्कृति का सम्बन्ध प्रधानत: आत्मा से है और सभ्यता का बाह्य जीवन
के आचार-व्यवहारों से' । मानव समुदाय अंनादि काल से विश्व के किसी प्रांगण में
रहते हुए उसके सतत निरीक्षण और परीक्षण से प्राप्त अनुभव के द्वारा उसके.
भौर अपने जीवन के स्वरूप, सत्यता; नित्य की परिवर्तनशीछूता, नश्वरता
भादि'तत्वौ के .सम्बन् मे जो-भावनाए' तथा विचार तथा उनसे प्रभावित अपना:
विशिष्टः बनाकरः तदनुसार >आचार-व्यवहार निर्मित करके जीवन यापन जो
_ करता है उस समूची प्रक्रियाःका नाम संस्कृति है जिसके अंतर्गत सम्यता आ.
र्कं जीवन् _
कौ भावनाजोःगौर् विरो से प्रभावित होकर निर्मित होता है दूसरे श्वौ
` मे, मानव समुदाय जीवम के प्रति अपने विरिष्ट दृष्टिकोण के कारण जौः आधार `
User Reviews
No Reviews | Add Yours...