सदाचार और नीति | Sadachar Aur Neeti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ , सदाचार ओर नीति स्वजो महाराज की श्रष्ट नीतिमत्ता बहुत प्रसिद्ध है। एक बार कल्याण के खूबेदार के यहाँ से बड़ा भारी खज़ाना बीजापुर के द्रबार में जा रहा था। महाराज वह खज़ाना लूट कर राजंगढ पर ले आये । इससे कल्याण के सूबेदार से उनका बड़ा भारी बैर होगया । परिणाम यह हुआ कि महाराज ने आबाजी सोनदेव नामक अपने ,एक सरदार का कट्याण के सूबदार पर चढाई करने का भेज। । आबाजी ने कल्याण पर धावा करके सूबेदार का पराजित. किया ओर उसे कैद्‌ करलिया | यह समाचार सुनकर शिवाजी महाराज बड़े प्रसन्न ` हुए ; और स्वयं कद्याण पहुँचे। वहाँ जाकर सूबेदार के उन्होंने कैद से छुड़ा रिया; और उसके बड़े आदर-सत्कार के साथ बीजापुर रवाना कर दिया । परोजित शत्रु के साथ उदारता का बर्ताव करना इसी के कहते हैं |! इसी का नाम है श्रेष्ठ सदाचार और नीति । अस्तु । आगे जो घटना लिखी जाती है उससे महाराज के सदाचार और नीति का और भी अधिक परिचय मिलता है । उपये क्त सरदार आबाजी ने ऊड़ाई के गडबड़ में उक्त कल्याण के सूबेदार की पु्र.बधू को भी पकड़ रक्‍खा था। महाराज जब कल्याणमे आये, तब आबाजी ने उनसे प्राथना की कि, इस लवाजमे में एक अत्यन्त लछावण्यवती युवती मिली है । उसके महाराज की सेवा के याम्य सममकर हमने रख लिया है । यह सुनकर महाराज शिवाजी ने आज्ञा दी कि, उस सुन्दरी का सभा (में ले आओ । यह आज्ञा पाते ही वद्र सरदार उसका ,खूब सजाकर सभा में ले आया । महाराज उसके देखकर हँसे और बोले कि, यदि हमारी भारता भी इसी प्रकार की सुन्दर होती, ता हमारा भी स्वरुप उसी के समान: हुआ होता । . यह सुनकर सब रोगों




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