तिरंगे कफन | Tirange Kaphan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उसने कहा--आपने देखे नहीं, परले किनारे पर दो-तीन पढ़े हुए थे........ ओर उसकी इच्छा हुईं कि अगर किसी जादू से वह मगर बन जाता तो ललिता को डसता, देखता वह डरने पर कैसी दिखती है........ललिता हँसती है तो कितनी प्यारी मादम होती है ( उसके दाँत बड़े सुन्दर ह ), उसका मुखड़ा कितना भोला है, उसे देखकर कौन कह सकता है कि इकीस की हे । शिरीप पागल. है सही (८ ओर क्यों न हो ! ), मगर उसकी इस बात में तथ्य है। ललिता सचमुच अपनी उम्र से बहुत कम दिखती है | वयस्‌ का संबन्ध असल में मन से होता है ; मगर कुछ चेहरों की एक विशेष प्रकार की गइन ही होती है जिस पर प्रोढ़ता का रुक्ष भाव कभी नहों आता। बसा ही शैतव का आभास ललिता के चेहरे पर है। शिरीष अ्रत्र अच्छी तरह जान गया है कि यह ललिता की बढ़ी-बड़ी श्रॉँखों, लंबी-सी, उठी हुई नाक और पतले-पतले ओठों की दुरभिसंधि है ! ललिता ने कहा--कहाँ ! मेंने तो नहीं देखे ।............ ओर चकित सृगी की भाँति चारों ओर निहारा । नाव तब तक और आगे बड़ आयी थी--भील ( भील ही कह लें उसे ) यहाँ पर और पतली हो गयी थी। भील के दोनों श्रोर ऊँची पहा- ड़ियाँ थीं---शक ओर चिकने सफेर संगममेर और दूसरी ओर चिकने काले संगमूसा की दो-रो सो फीट ऊँची पहाड़ियाँ । पानी के जीच-बीच मे जगह- जगह पर आडी-तिरछी अनेक सफेर और सिलेटी रंग की चिकनी-चिकनी [नें खड़ी थीं--पानी के बीच प्रस्तर की तरल दीवार ८ नीचे पेरों के पास बहते हुए कल-कल जल ने और ऊपर से बरसती हुई चाँदी ने उन प्रत्तर-प्राचीरों को भी तरल बना रिया था )। नाव पर से दूर से देखने से लगता है कि आगेवाली उस चद्दान के बाद पानी खत्म; मगर नाव जब उसके पास पहुँचती तो दिखता कि चट्टान को छता हुआ पानी का বাবলা निकल गया है, अनायास लगता कि चट्टान के पीछे कोई छुपा हुआ है < ११




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