हिन्दी - साहित्य का प्रतीत भाग - 2 | Hindi Sahitya Ka Pratit Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९५ उक्त श्रंश वहो प्रक्षेप है । दूरा दल्ल कहता क्रि नहीं श्रालम श्रकबर के समकालिक ই इसलए 'रागमालाः का धंश क्षेपक नहीं ह| उक्त लेख श्रोरियेटल्न कफर सके उस्‌ श्रधिबेशन म सबसे पहले पदा गया था जो काशी विश्वविद्यालय में हुआ था দ্গীহ जिसकी हिंदीशाखा के समापति स्वर्गीय श्यामसुंदरदास थे | पर लेखक उस कांफ्रेंस का नियमित सदस्थ नहीं था। इसलिए लेख उसके कायविवरण ओर लेखभाला में स्थान न पा सका पर वह उस समय नागरीप्रचारिणी पत्रिका का संपादक था इसलिए उसने इसे उसमे प्रकाशित कया दिया | उसके प्रकाशित हो जाने पर भ्रम का ध्वांत विज्लीन हो गया ओर विवाद की शांति हो गई। दूसरा प्रसंग देव कवि के उस उद्गार से संबंध रखता है जिसमें अ्रभिधा को उत्तम काव्य कहा गया है ओर बिसका उल्लेख स्वर्गीय जाचायपःद रामचंद्र शुक्ल ने स्वमत के प्र तिपादन में दों स्थल्नों पर किया है। भारतीय परंपरा अभिधा को उत्तम काव्य नहीं मानती। देः क्त्रि ने उल्टी गंगा बहाई | अधम व्यंजगा? पर तो शुक्षजी कुछ ठिठके, पर उसका समाधान उन्होंने यह कहकर कर लिया कि यहाँ उनकः प्रयोजन वस्तुब्यंजना के क्रीड़ाकोतुक से होगा। देव के 'शब्द्रसाथन? में अभिषा, ल्क्षणा ओर জলা का अथु और ही है ओर यहाँ उसका श्रं परपरासिद्ध रूपमे माना गया है। इस लेख से प्रमाणित हो जाएगा कि देव ने अभिधा आदि शब्दों का प्रयोग नायिकाश्रों और उनके काव्य में नियोजन को लेकर किया है। उन्होंने श्रमिषा में श्रभिधा आदि जो चकपकाहट त्वानेवाले अनेक भेद किए है उन्हें प्रकृत श्रथ में न लेने से मारी भ्रम फेल्ा हुआ था और है। इसके द्वारा उसके निवारण में विशेष सहायता प्राप्त होगी। अस्तु । अपने मुख झपनी कर ये का श्राख्यान-व्याल्यान उत्तम नहीं। अतः इस चर्चा का समापन करते हुए अरब उस पुनीत कार्य मँ संलग्न हेता हूँ जो कृतजताजशञापन कहलाता है। इस ग्रंथ के इस रूप में प्रस्तुत होने का सबसे अधिक श्रेय मेरे प्रिय शिष्य ओर श्रनुसंधायक भ्री गोवधनल्ाल उपाध्याय को है। प्राध्यापक की सबसे प्रकृष्ट सहायता कदाचितू कोई उपाध्याय ही कर सकता है | इस कायम से मुक्ति उन्हीं की उपासना ने दिल्लाई। समय के संकोच में भी उन्होने यह सव कैसे संपन्न करा लिया, मँ सयम नीं बता सकता | उनका नत्यिक काय करने का आग्रह याज्ञा न जा सका श्रौर नेमित्तिकं साधना पूणं दो गई । इस होम की पूर्णाहुति पर सफलता का सारा आशीवांद उन्हीं को है। होता के लिए सामग्री-समिधा का संग्रह करनेवाले




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