किसान की बेटी | Kisan Ki Beti

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Kisan Ki Beti by बाबू गंगाप्रसाद गुप्त - Babu Gangaprasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अयोमय प्रथम भाग। ९७ |. विश्फूड के आने ओर उसकी झूठी सच्ची बातों से मिष्टर जॉन उसकी सब बुराई भूल गए ओर उसके साथ बहुत अच्छा घर्ताव किया । गत प्रकरण में हम शिख चके हैं कि मे विल्फ़िड को छेकर अपने पिता की ओर चली । जब विल्फ़िड ओर मिष्ठर जॉन से साक्षात हुआ तो मिष्रं जॉन उसको देखकर बहुत प्रसन्‍न हुए ओर में से कहने छलगे-/ जर्दी जाओ आर वि- ल्फ़िड के वास्ते टेबुल पर जलपान का सामान चुन दो। ?” विल्फ़िड ० । नहीं नहीं, में यहोँ आप छोगों को कष्ट देने नहीं आया हूँ। में भी सबके साथ भोजन करूँगा । অলী নী] बगीचे ही की सेर करने की इच्छा होती है। मिष्ठटर जॉन । जेसी तुम्हारी इच्छा हो, परतु हो, सच सच बताओ नुम्हारे बारे में जो महा निन्दनीय बातें लोगों ने प्रसिद्ध की थीं वे सच थीं या झूठ ! विल्फूड० । वह किम्बदन्ती एकदम वे-सिर पेर की थी। लन्दन के छोग ऐसे दुष्ट हैं कि जिसपर चाहते हैं उसी पर दोष छगा देते हैं । बेचारे मिष्टर जॉन सीधे सादे आदमी थे। वह विल्फ़िड की बातों प्र विश्वास करके बहुत असन्न हए, ओर बोले- ८ धन्य परमेश्वर कि वे बातें अस्त्य निकी ! अव कदां आज कह तुम्हें अपनी फुफेरी बहिनों से मिलने का अवसर मिछा था कि नहीं | ”? विश्फूड० । में उनसे बहुत कम मिछता हूँ, इस कारण कि कनेछ बिलासिस आर बड्यूशम्प रुपया उधार मांगते हें, 1र किसी से छेकर फिर देने की इच्छा उनकी होती हो नहीं ३




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