रानी तिष्यरक्षिता | Rani Tishyarakshita

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Rani Tishyarakshita by सत्यदेव चतुर्वेदी - Satyadev Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रानी तिष्यरक्षित्ता ] १३ पश्मावतीके गर्भसे पैदा हुए. हैं। श्रतः आज्ञा हो, तो इस समय उनके पास डज्जैयिनी अग्रमहिषीकी अध्वस्थ्यताका समाचार भेज दिया जाय |? अग्रमहिषी श्रसन्धिमिन्नाकी सेवामें तत्पर एक परिचारिकाने आकर झपिवादन किया और शाज्ञा पाकर कहय--“श्रीमन्त सम्राव्देव | सापम्राशी- की दृष्टि धूमने लगी है | उनकी दशा बहुत खराब हो चली है ।! मदामात्य और सप्राट अशोक घबराकर अग्रमहिषीके समीप जा पहुँचे । अ्रग्रमहिषरीके प्राणश-पखेरू उड़ गए थे | राज्यमवनभे शोक छा गया। सबकी आँखोंसे श्राँसू गिर रहे थे ॥ ' डसी दिन डज्जयिनीप्रदेशके उपप्रजापति एवं युवराज--कुणाल (जो अपनी पत्नी कांचनमाल्ला श्र पुत्र सम्प्रतिके साथ उज्जैन रूते थे ) के पास यह श्रप्रिय समाचार भेजने दूत भेज्ञा गया | युवराज कुणाल प्रियदर्शी सप्रा८ अशोकबदनके पुत्र थे, जो राजपाता पञ्मावतीके गर्भसे पैदा हुए ये । पश्चावतीके देहन्त हो लाने पर अग्रम्ृद्दिषी असन्धिमित्राने पाल-पोषकर कुणालको बड़ा किया था, जिससे थे कुशाल पर बड़ी ममता रखती थीं | ' युवराज कुणाल बड़े लोक-प्रिय शासक थे | वे समय निकालकर प्रजाके दुःख-सुखका तथा श्रधिकारियोंके कार्योंका स्वयं निरीक्षण किया करते थे | उजयिनौ-निवासी योग्य शासक पाकर दर्पका अनुभव करने लगे थे | सारी प्रजाका प्रेम कुणाल पर था| युवराज बाहर गए, थे | सम्प्रतिके साथ काँचनमाला अपने प्रकोष्ठमें बैठी थी । वक उसकी बालक्रीडा मे मुग्ध थी | হালচাল प्रमुख द्वार पर घम विवद्धंन युवराजका रथ आ पहुँचा | अभिवादनकर अतिहारीने फाटक खोल दिया। युवराज रथ लेकर भीतर प्रविष्ट हुए. | रथके घोड़ोंकी टर्पे सुन कांचनमालाने प्रकोष्ठसे उद्यानमें दृष्टिपात किया । सम्प्रति मी उधर देखने लगा और युवराज कुणालको देख;




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