रानी तिष्यरक्षिता | Rani Tishyarakshita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रानी तिष्यरक्षित्ता ] १३
पश्मावतीके गर्भसे पैदा हुए. हैं। श्रतः आज्ञा हो, तो इस समय उनके पास
डज्जैयिनी अग्रमहिषीकी अध्वस्थ्यताका समाचार भेज दिया जाय |?
अग्रमहिषी श्रसन्धिमिन्नाकी सेवामें तत्पर एक परिचारिकाने आकर
झपिवादन किया और शाज्ञा पाकर कहय--“श्रीमन्त सम्राव्देव | सापम्राशी-
की दृष्टि धूमने लगी है | उनकी दशा बहुत खराब हो चली है ।!
मदामात्य और सप्राट अशोक घबराकर अग्रमहिषीके समीप जा
पहुँचे । अ्रग्रमहिषरीके प्राणश-पखेरू उड़ गए थे |
राज्यमवनभे शोक छा गया। सबकी आँखोंसे श्राँसू गिर रहे थे ॥
' डसी दिन डज्जयिनीप्रदेशके उपप्रजापति एवं युवराज--कुणाल (जो
अपनी पत्नी कांचनमाल्ला श्र पुत्र सम्प्रतिके साथ उज्जैन रूते थे ) के
पास यह श्रप्रिय समाचार भेजने दूत भेज्ञा गया |
युवराज कुणाल प्रियदर्शी सप्रा८ अशोकबदनके पुत्र थे, जो राजपाता
पञ्मावतीके गर्भसे पैदा हुए ये । पश्चावतीके देहन्त हो लाने पर अग्रम्ृद्दिषी
असन्धिमित्राने पाल-पोषकर कुणालको बड़ा किया था, जिससे थे कुशाल
पर बड़ी ममता रखती थीं | '
युवराज कुणाल बड़े लोक-प्रिय शासक थे | वे समय निकालकर
प्रजाके दुःख-सुखका तथा श्रधिकारियोंके कार्योंका स्वयं निरीक्षण किया
करते थे | उजयिनौ-निवासी योग्य शासक पाकर दर्पका अनुभव करने लगे
थे | सारी प्रजाका प्रेम कुणाल पर था|
युवराज बाहर गए, थे | सम्प्रतिके साथ काँचनमाला अपने प्रकोष्ठमें
बैठी थी । वक उसकी बालक्रीडा मे मुग्ध थी |
হালচাল प्रमुख द्वार पर घम विवद्धंन युवराजका रथ आ पहुँचा |
अभिवादनकर अतिहारीने फाटक खोल दिया। युवराज रथ लेकर
भीतर प्रविष्ट हुए. |
रथके घोड़ोंकी टर्पे सुन कांचनमालाने प्रकोष्ठसे उद्यानमें दृष्टिपात
किया । सम्प्रति मी उधर देखने लगा और युवराज कुणालको देख;
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