मूलाचार प्रदीप | Moolachar Pradeep 

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Moolachar Pradeep  by लालारामजी शास्त्री - Lalaramji Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परमपूज्य श्री १०८ आचाये विमलसागर जी महाराज का । साक्षत्त जावन पारचय ॥ न> विमल प्रतिभा, विमल वाणी, विमल छयि मनहार । विमल मुद्रा, विमल चारित, विमल ज्ञान अपार | विमल पशन, विमल दशन, विमल पद दातार | विमल सिन्धु , महा मुनी पद, वन्दना शत वार्‌ ॥ परमपूर्य, पूञ्याराभ्य, प्रातस्मरणीय, चारित्र चूडामणि, निर्भीक आपं मागं प्ररूपकः, श्री १०८ आचाय विमलसागर जी महाराज के अनुपम और अपार गुणों को कोई व्यक्ति लिखना या कहना चाहे तो न तो वह लिख ही सकता है न कह ही सकता है। कारण आपका जीवन सेव से विमल रहा है, और आप में सदेव से अनेक गुण विद्यमान रहे हैं जो कहें या लिखे नहीं जा सकते हैं | परम पूज्य चरित नायक जी का जन्म भारतवष के उत्तर प्रदेश में एटा जिलान्तगत तहसील जलेसर के थोड़ी दूर स्थित कोसमां नामक ग्राम में हुआ था । यह পাল ঘল- धान्य पूण था, यहाँ दि० जैन धर्मानुयायी पद्मावती पुरवाल जैन वन्घुओं के चार पांच परिवार निवास करते थे। जो कि प्रतिभाशाली वेभव सम्पन्न थे। इन्हीं परिवारों में से एक परिवार के नायक श्रीमान्‌ स्वनांसधन्य लाला विहोरीलोल जी जैन थे, जिनकी परम सुन्दर सुशीला धर्मपत्नी का शुभ नाम श्री कटोरीबाई जैन था, यह कुसवा निवासी ला० चोखेलाल जी जैन की लघु पुत्री थीं | उक्त दम्पति परम धार्मिक और सदाचारी, उदोर, सज्जन प्रकृति थे। शुभ मिती आश्रिन कृष्णा सप्तसी वि० सं० १६७३ की शुभ बेला और शुभ नक्षत्र में हमारे पूज्याराध्य चरित नायक ने श्री माता कटोरीवाइ के उदर से जन्म ग्रृहण किया । “होंन हार विरखान के होत चीकने पात'” की कहा- वत के अनुसार नवजात बालक अपनी मंद संद मुस्कान श्यौर विनोद्सयी बाल क्रीड़ाओं से परिवार के सन को आकर्षित करता था । बालक का शुभ नाम श्री नेमीचल्द्र जैन रखा गया। दुर्योग से आपकी माताजी का उद्र रोगस्य व्याधि के कारण पट्‌ साप्त बाद ही स्वर्गंवांस हो गया । अब आप के पालन पोषण का कार्य आपके पिताजी की भगनी ( आपकी बुआ ) श्री दुर्गाबाई जैन ने किया। बालक वय में आपने स्थानीय पाठशाला में शिक्षा ग्रहण ~~~ म न व ক भ; সন: क्र কিরন > ১১০৯৬ ০৯২০২ ০২ ০৯২১০ ২২০৭ ৯০৯ ~ ~ ~ ~ ~ ~ > ~ ~ ~ ~ ~ 41 न्न © हि ছু তে ||| `




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