सोहन काव्य - कथा मंजरी भाग - 2 | Sohan Kvya - Katha ManjariBhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दोहा :-- कही पति से बात यह, सुन कोपा तत्काल ।
केसे फक दी उसने मणि को, समभा मै नहीं हाल ।।
मांगलू उनसे मैं जाई ॥५।।
भागवत चल करके आया, সহি হী মৃত से दरसाया।
नदी में भेट कर श्राया, भक्त ने एसे फरमाया।।
दोहा :-- लोग इकटु हो गये, सुनकर सारा हाल।
कहे दबा ली इसने, मणि को करे ग्रसत पंपाल ।।
सभी को रहा है भरमारई।।६।।
आपस में करे बात ेसी, वक्त यह् श्रा गई है कंसी।
भक्त बन करे है ठग जैसी, मणि रख करे बात एेसी।।
दोहा :-- भागवत भी कह रहा, करो न ऐसा काम ।
मरि आपको देनी होगी, समभो हिए तमाम ।।
दबेगी हरग्िज यह नांही ॥1७॥।
भक्त कहे डाली नदी के मांय, चलो वहां तटिनी में मिल जाय ।
भागवत कहे मुझे बहकाय, गई वह जल में कैसे पाय ।।
दोहा :- भक्तसभीको साथ ले, नदी किनारे आाय |
बहती जल की धार में, वह् डबकी सद्य लगाय ॥
पहुँच गया जल के तल मांही ॥।८॥
मुदरी भर कंकर वै श्राया, केहै ये मणिये ले भाया।
लोग कहे दिमाग चकराया, कंकर को मणिये बतलाया ।।
दोहा :- लोहे की मंगवाय के, दीना त्वरित अड़ाय ।
कंकर सब पारस बने, कचन लख লিলা ।।
भक्त की जय जय सब गाई 11६॥।
श्रद्धा हो जिसके दिल मांही, कमी का काम वहां नांही ।
मनुष्य क्या देव चरण मांही, गिरे नित स्वर्गों से आई ।।
दोहा :-- संशय इसमें है नहीं, सुनो लगाकर कान ।
जग जंजाल से निकल सज्जनो, भजो सदा भगवान ।।
छोड़कर तृष्णा दुःखदाई ।१०॥।
श्रवण कर कथा ध्यान दीज्यो, सुक्ृत की गठड़ी संग लीज्यो ।
बुराई मन से तज दीज्यो, भावना उज्ज्वल कर लीज्यो ॥
दोहा :-- प्राज्ञ कृपा 'सोहन' मुनि, सदा रहा चेताय ।
श्राश्चव तज संवर में आवो, जीवन सफल वनाय ।।
मिलेगी . मुक्ति सुखदाई ।।११।।
11. (1
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