हिन्दुस्तान की समस्यायें | Hindustan Ki Samasyayen

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Hindustan Ki Samasyayen by जवाहरलाल नेहरू - Jawaharlal Neharu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दुस्तान की समस्‍यायें ११ है ? क्या इस सम्बन्ध में राष्ट्रसंघ कुछ मदद दे सकता है ¢ मे समभता हैँ कि करीत्र-करीव सभी बडी समस्‍यायें जो दुनिया में -यरोप या हिन्दुस्तान या चीन या अमरीका में--हमारे सामने है, तें आपस में इतनी मिली हुई है कि सबको छोड़काः एक को समभझना या उसे सुलभाना अ्रसल में वढा मुश्किल है | आज दुनिया के जुदे-जुदे हिस्से आपस में बहुत सम्बिन्धित होते जा रहे है और दुनिया के एक हिस्से की घटनाये फौरन ही दूसरे हिस्से पर अपना श्रसर डालती हैं | अगर बडी घयना--जैसे अन्तर्राट्रीय युदइ--होती है तो स्पष्ट रूप में तमाम दुनिया को परेशानी होती है। अगर कोई आर्थिक हलचल होती हे--जैसी कि पिछले कुछ बरसों मे हुई--तो उससे दुनियाभर के ऊपर असर पडता है | ये वडी लहरे' ओर आन्दोलन तमाम दुनिया पर असर डालते है ओर स्पथ रूप से हिन्दुस्तान की समस्या दूसरी समस्याओं से बहुत हिली मिली हैं। कोई बडी चीज हिन्दुस्तान में होती है तो वह जरूर ही तमाम ब्रिटिश-राष्ट्र समूह पर यानी ब्रिटिश साम्राज्य- बाद पर अपना असर डालती है । वह दुनिया के लिए. एक महत्त्वपूर्ण चीज होती है; क्योकि ब्रिटिश साम्राज्यवाद आज दुनिया की राज- नीति मे एक अहम चीज हे | जहातक हिन्दुस्तान का सम्बन्ध है, यह सभी जानते है कि उसने ब्रिटेन की नीति पर पिछले सो बरसों मे सबसे ज्यादा असर डाला है| नेपोलियन के जमाने में हिन्दुस्तान बढ़ा दिखाई देता था, दाललाकि श्रगर नैपोलियन की लडाइयो का दाल श्राप पढ़े तो देखेंगे कि हिन्दुस्तान का नाम कही-कहीं ही आया है | लेकिन तह में वह हर वक्त मौजूद था| चाहे क्रीमियन-युद्ध हो या मिस्‌ पर कब्जा; लेकिन हिन्दु- स्तान का और उसके रास्तों का सवाल हमेशा उसकी तह में बना ही रहा । हिन्दुस्तान के रास्तो का सवाल ब्रिटिश राजनीतिशों के सामने हमेशा रहा है | शायद आप में से कुछ को याद हो कि महायुद्ध के घाद भी एक विचार था; जिसको मि० विन्सटन चर्चिल ने और ब्रिटिश जनता के कुछ खास नेताओ ने घोषित किया था--कि एक वडा मध्य




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