शान्ति - कुटीर | Shanti - Kuteer

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Shanti - Kuteer by अविनाश चन्द्र - Avinash Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रान्ति-कुटीर-- ५ १२ শর পু कारण था। ब्याह हो जानेपर लड़की दूसरेकी हो जायगी, दूसरेके घर चली जायगी, इसी चिन्तासे मनोहरछाल और उनकी चीने दो एक बरसके लिए यह काम रोक रक्‍्खा था। लेकिन उन्होंने अपनी छड़कीके - छायक लड़का ढूँढ़ रखा था । इसलिए इस बारेमें वे एक तरहसे ` निथिन्त ही थे | वह छड़का और कोई नहीं मेरे मित्र भोछानाथ ही थे । में नहीं कह सकता था कि, मनोहरछाछक ओर उनकी चखीके इस ` विचारकी बातको भोखनाथ ओर उसकी बुजके सिवा ओर कोई जानता था या नहीं। किन्तु भोडानाथसे जहाँ तक मुझे माद्धम इमा, र्ङिताको - इसकी कुछ भी खबर न थी। छलिताके माता-पिता उसके ब्याहकी बात उसके सामने कभी उठाते ही न थे। और छलिताको मैंने जैसी सीधी -सादी और पवित्र खभाववाली देखा, उससे मुझे यही जान पड़ा कि “ब्याहका खयाल ही कभी उसे नहीं हो सकता । पहले जिस रोज में अपने मित्र भोछानाथके साथ मनोहरढालके मकानपर गया तब उनकी बाहरकी बैठकमें जाकर देखा, वहाँ कोई न “था । हम यह समझकर कि मनोहरछाछ कहीं घूमने गये होंगे, लेटने खगे ] इसी समय बेठकखानेसे मिले हुए बागमें देखा कि हर्धिगारके “ पेड़के नीचे बैठी हुई एक बालिका शान्तभावसे फ़ूछ चुन रही है। -भोखने उसे देखते ही पुकारा-“ छलिता ! ”” छलिताने एक बार दृष्टि “उठाकर इधर उधर देखा, फिर भोलापर दृष्टि पड़ते ही वह बाढिका : आनन्दसे दौड़कर भोछाकी ओर चली | किन्तु भोछाके साथ मुझे देख- “कर वह सहसा खड़ी हो गई और यह कहकर भीतर दौड़ी गई कि “ जाना नहीं, में बाबूजीको बुलाये छाती हैं। ”” दम भरके बाद मनोहरछाल बाहरके बैठकखानेमें आये | उनके साथ “उनका हाथ पकड़े हुए वह आनन्द और उमंगकी जीवित मूर्ति छलिता ঙ )




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