द्रव्य - संग्रह | Dravya Sangrah
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
728 KB
कुल पष्ठ :
60
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आदरशटीजायां प्रधमाधिकार [ १३
अधघमद्रव्य का स्वरूप
দিয়া श्रघम्मो, पुग्गलजी शण उागमदयारी ।
या जह पहिया, गन्दा गेव मो धर ॥१८॥
स्वानयुतानामधम पुद्गनजीकान) स्थवनमहरी।
छाया यवा पविज्धना, गच्छतो नैत त परत ॥१२॥
आवयाय--( नह ) जैसे (छाया ) छाया ( ठायत॒दाय )
তহবে हु ( पद्दियाण ) पचिक जनों को ( टाणसदयारी ) टहरी में
सद्वायक [ दोदि ल होदि द तह «उसी प्रकार, खो>वो ] ( ठाण
शुदा ) टएरते हुए ( पुग्गलपगीयाण ) पुदुगल श्रौर पीयों वो
( আয্যজহযোণ ) হনে ঈ অহাবঙ্ধ[ হীহি হীরা ই দীল্ধহ]
(अधम्मौ) श्रधर्मद्रव्य [ रोश्वा- जानना चाद्व ] (मो वट् श्चधम
द्रन््य ( गच्छतो ) गमन करते हुए जीव श्रौर पुदुगर्लो को ( शेष )
नहीं (पर ठह्राता है |
आवयाथ--वैस यदि सुसाफिर टहरना चाह নী व्री
दाया र्मके दृद्टरन में सद्वायचा करती ?, किन्तु चलना चाह
दो उसे प्रेरणा कर नहीं ठद्दराती, उसी प्रफार जा जीय्र या
पुदूगल ठद्दरन हैं, उन्हें ठदरने मे तो सद्दायता करता दे
( प्ररणा नहीं करवा ) पद अ्धमताय फदलाता है ॥ १६॥
थ्राकाशद्र य वा लछ्ूण
পি জীবাহীর্ঘ वियाण श्रायाम।
जेष्णं लोगामाम, श्रन्लामागासमिदि दरदं ॥१६।॥
भगयगदानयागय, जीप्रदीना विजानीहि श्रक्राशम् |
जन জীরকাহার। গভাকারাহাদিনি হিনিখদ 11661
छर ` 5
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