देशपूज्य श्री राजेन्द्र प्रसाद | Desh Pujy Shri Rajendra Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दियापी अदस्या कि कलकत्ता युनिवर्सिटीका दायरा उस समय धुत यड़ा था सारा बंगाल पिद्दार आसाम उड़ीसा और वर्मा बसके अधीन में । चंगाछ से बादर के विद्यार्थियों फो युनिवर्सिटी परीक्षा में कोई अच्छा स्थान पाना श्रहुत कठिन दोता था । परीक्षा में सर्व-प्रयम होने से मापको २० मासिक स्काउरशिप बोर कई स्वर्णपदक मिछे | अंग्रेजी में भी साप सबसे अव्वल हुए थे इस कारण १० मासिक का एक सर स्काटरशिप मिंछा 1 बाबू राजेन्द्र प्रसाद जी धचपन से ही वड़े नियमित रूप से पढ़ी छिखते थे। माप विशेष परिश्रम करते हो समय छुसमय पढुते रदददे दए--ऐसी वात नहीं थी । पढ़ने के समय भाप पढ़ते और खेलने के समय खेछते थे । फिसी विपय को बरियुल रद जाना-- कंठस्थ कर जाना मापकों सच्छा नददीं उगता था जो कुछ पढ़ते थे सदा मन छगाकर पढ़ते थे । झाप बरावर नियमित रूप से स्कूछ जाते रदे। एक दिन भी ऐसा नद्दी हुमा जब आाप अच्छे रहते हुए बिना विशेष कारण के स्कूल से अनुपश्थित रदे दो । तिग्रमित रूप से सब काम करने की छादृत आापको बचपन ते दो रही । खेठकूद में मी आप नियमित रूप से भाग छेते थे। वचपन में साप कबड्डी बगैरद खेठा करते थे जय स्कूल में गये हो फुटवाल मो खेठना शुरू किया । छपरा जिद स्कूठ के फुटवाछ टीम के भाप कुप्टेन मी रदे। खेठलूद में ्याप साग देते थे सददों खेफिन आपका जितना ध्यान मानसिक उन्नति की मोर था उतना शारीरिक दन्नति की कोर नददीं । शरीर को तो अब भी साप ज्यादा




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