रिष्ट समुच्चय | Rista Samuchchay

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Rista Samuchchay by नेमिचंद्र जैन शास्त्री - Nemichandra Jain Shastriश्री दिगम्बर जैनाचार्य दुर्गदेव - Shree Digambar Jainancharya Durgdev

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

नेमिचंद्र जैन शास्त्री - Nemichandra Jain Shastri

No Information available about नेमिचंद्र जैन शास्त्री - Nemichandra Jain Shastri

Add Infomation AboutNemichandra Jain Shastri

श्री दिगम्बर जैनाचार्य दुर्गदेव - Shree Digambar Jainancharya Durgdev

No Information available about श्री दिगम्बर जैनाचार्य दुर्गदेव - Shree Digambar Jainancharya Durgdev

Add Infomation AboutShree Digambar Jainancharya Durgdev

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हे [८] केयलज्ञानमास्थाय दुगेदेवेन भाष्यते ॥ पायै उवाच-मगवन्‌ दुगेदेवेश | देवानामिप ! प्रभो !! भयवन्‌ कष्यतां सत्यं संबत्सरश्षलाकलम्‌ ॥ {गेदेव उवाच-श्रणु पाथं ! यथात भविष्यन्ति तयादूमुतम्‌ । दुभिक्ष च सुभिक्षे च राजपीडा भयानि च ॥ एतद्‌ यो ऽत्र न नाति तस्य जन्म निरथकम्‌ । तेन सवं प्रवद्यामि विस्तरेण शुभाशुमम्‌ ॥ > > > > > > > .> > भणिय दुः्यदेवेण जो जाणइ वियक्खणों । सो सब्बत्य वि पुञ्जो णिन्छुयश्मो ङद्रलच्छी य,॥ दुसरे दुग!सिद् 'काशन्ञ्रवृक्ति' के रचयिता हैं तथा इस नाम के एक आचाये का उद्धरण आरस्म सिद्धि नामक प्रम्थ की टीका में श्री हेमहंसगर्णि ने मिस्‍न प्रकार उपस्थित किया है-- दुर्गसिंह-“'मुण्डयितार: श्राविष्ठायिनो भव॒न्ति वधूमूढास्‌” इति | उपयुक्त दोनों दुगेदेवों पर विचार क़रने से मालूम होता है कि ये दोनों ज्योतिष विषय के काता थे, परन्तु रिप्रसमुश्य के कर्ता ये नहीं हैं | क्योंकि रिष्ट समुख्यय की रचनाशेली विरकुल भिन्न हे गुरुपरंपरा भी इस बात को व्यक्त करती है कि आख्राये दुगेदेय दिगम्बर परम्परा के हैं। जैन साहित्य संशोधक में प्रकाशित यृहट्टिप्पनिका नामक प्राधीन जैन भ्रन्थसूची में मर्ण करिडका और मन्त्रमहोद्धि के कर्सा दुर्गदेव को दिगम्मर आम्नाय का आचाय मामा दहै। रिष्टसलमुज्यय की प्रशस्ति से मातूम होता है कि इनके गुर का नाम संयमदेव था। संप्रमदेव भी संयमतेन के शिष्य थे तथा संयमसेन के गुद नाम माधवचस्‍्द था | दि० जैन ग्रन्थकर्सा और उनके प्रम्थ' नामक पुस्तक में माघवचन्द्र नामके दो ष्यक्ति राये हैं। एक तो प्रसिद्ध अिलोकसार, कसपणकसार, लब्धिसार आदि प्रन्थों के टीकाकार और दूसरे पदूमावतीपुरवार जाति के विद्वान्‌ हैं। मेरा अपना विचार है कि संयप्रसेन प्रसिद्ध माघवयृक्र भके के शिष्य होगे । कपकि इस




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now