पांचवे पुत्र को बापू के आशीर्वाद | Panchwe Putra Ko Bapu Ke Ashirwad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
622
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनोखा অন
স্পা জর
মি স্টার পি পা
चि, कमलनयनको गाधीजीने सम-समथं पर जो पत्र किख ह उनके अन्दर
उसके क्रमिक विकासकी झलक पाई जाती है। छोटी उम्रके पत्र अलग है।
सीलोन जानेका तथ हुआ तवके अरूग हे, और उसकी महत्त्वाकाक्षा
देखकर ही गाबीजी मातापिताको सलाह देते पाये जाते हे ।
थि कमला, मदालसा और ओम् तीनो मीठी लडकिया हूँ। प्रेमल हें ।
किन्तु तीनी अपने-अपने नमूनेकी स्वतत्र व्यक्तिया है। गाधीजी तीनोको
अलग-अलग ढगसे प्रेरणा देते हे और उनके विकासमे मददगार होते हें।
मिठास तो सवसे ज्यादा रामङृष्णकौ हु, ठेकिन' वह् अपनी सस्कारी
नम्रताके पीछे अपनी स्वतत्रताको समाल लेता हैं। यही कारण है कि उसके
नाम गाधीजीके खत कम हूँ। किन्तु प्रेम और इतजारी सवकी ओर एकसी ही
है | जानकीमैय [में आत्म-विश्वास पंदा करनेका काम तो गाधीजी ही कर
तास तक किं जमनालालजीके स्वर्गंवासके वाद जो जानकीमेया सती
„~. ~ +त जीवेना अत चाहती थी उनके सिर पर बापूजीने गोसेवाका
भार डाला। इतना ही नही ,किन्तु उन्हे उदके हफं सीखनेके लिए भी विग
दिया। यह तो गाधीजी ही का काम था।
भारतका आतरिक इतिहास अगर हम' ध्यानसे पढे तो हम देख सकते है
कि हमारे राष्ट्रके सास्कृतिक धुरधर सबके-सव विशाल परिवार, याने
अविभकक्त कुटुब पद्धतिके ही कायल थे। “वसुधव कुटुम्बकम्” ही उन सबका
आदर्श था। हम यह भी जानते है कि आदर्श कौटुविक सद्गुणोका विकास
किये विन्।, परिवारी परिधि वढाते जाना खतरेसे खाली नही हं । अपन
देशमे हमने अविभक्त कटुव पद्धतिका पुरस्कार करते-करते कर्द व्यक्तियोके
विकासमे बाधा डाली है और चद व्यक्तियोके व्यक्तित्वको कुचल डाला
हैं। कई बार गाधीजीने चद व्यक्तियोका नेतृत्व मजबूत' करनेके लिए
दूसरोके व्यक्तिगत विकास पर अकुश रखा है, और अगर उन्होने अपने
विकासके लिए अलग क्षेव नही दृढा तो उनका व्यक्तित्व बढनेसे रुक
भी गया ह। जमनालालजीका तरीका कुछ अलग থা। उन्हीके मुहसे
मेने सुना ह करि जव कभी उन्होने देखा कि दौ व्यव्तियोके स्वभावमं
परस्पर मेल नही है तो वे दोनोंके लिए अलग-अलग भिन्न-भिन्न क्षेत्र बना
देते थे ताकि दोनोकी शक्तिका पूर्ण विकास हो सके। यही कारण था
१५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...