शैशव - स्वप्नम् | Shaishav - Swapnam

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Shaishav - Swapnam by आचार्य दीपंकर - Acharya Dipankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उषा की पहली किरण से ( १९ } श्रो, पहली किरण छपा की ! सप्तार को फीका डाल कर छाये गाहे श्रन्धकार्‌ को- देख<देख कर, व्यथं में तेरा चेहरा पीला पड़ गया ! मानियों का मार्ग रोकनेबाला, काले हृदय का--- हैं प्रन्धकार, कैरी निगाहों के पड़ते ही स्वयं नष्द हो लेगा !! अरी, किरण ! क्यों श्रपते श्रापक्रो निर्बल मान जठ हये? बहु छोदा या व्ज- पब॑तो की चोटियाँ काट फेंकता हे ! है মুছলি ! श्रौर तेरी पीठ के पीछे पीछे तो--- ग्रन्धकार के साम्राज्य का वरी, समस्त तेजों का भण्डार वहु सूरज भी - कदम बढ़ा कर चलता फिरता है :! रीन |]




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