श्री समय सार | Shri Samay Sar

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निरंजन जमींदार -Niranjan Jamindar

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श्री कुन्द्कुंदाचार्य - Shri Kundkundachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ ] १-- १७॥ १७॥ और १--१८॥ १८॥ जसे कोई पडसा चाने वालो मनक राजा के (छत्तर, चर और दूसरी बडी बातनां ) से पेचानी जाय हे और श्रद्धा (सिरधा) निशे करे हे, ओर फिर कोसिम से उनकी सेवा करे हे उनी तरे मोक्ष चानेवाला मनक ने जीव के राजा की तरे समजी के प्रिरदा से सेवा करनो चईये । उकाज पीछे चलन चईये ओर जिन्दगी में लान चईये । १-- १५।१९॥ जब तक उनो आतमा के द्रव्य करमे, भाव करम आग सनी का नो करमना में “यो हुं हूं” ओर महारा में करम ओर नो करम है” असो अकल रेवे है तब तक उनो आतमा बे ग्यान नी होवे हे । १--२०॥२०॥, १ --२१।।२१॥ ओर १--२०।२०॥ ` अपनां से दसरा जो लुगई. बेटा ओर नाता गोता का रेवे है. चेतन (जिन्दा) हैं, पर्दसा, अनाज असा जड़ पदारथ ओर गांव सेर असौ बध्नीनां, चनन (जिन्दा) अचनन (जद) टे इनका बारा में अको सोचे की 'यहनटह ह इनक हूं” यो म्हारों है” “यो पेला म्हारो थो' “पेला म्हारो बी योज रूप थो'' “आगे वी यो म्हारो होगा इनी तरे को खुद से जो झूठो बाततां करें हे वो अग्यानी (मूरख) केवाय है ओर जो खास अरथ के चोज का रूप जाने हे ओर बसो झठो सोंच विचार नो करे है वो ग्यानी आतमा भीतर है| १--२३॥२३॥, १--२४।॥।२४॥, १-- २५॥।२५॥। अग्यान से जिकी बुद्धि भरमई गई हे जो झूठा लगावनां का भाव से जुडयों हे असो जीव केवे हे कि सरीर से बन्ध्यों ओर सरीर




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