अंतर्ज्वाला | Antarjwala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अंतर्ज्वाला  - Antarjwala

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

चन्द्रगुप्त विध्यालंकर - Chandragupt Vidhyalankar

No Information available about चन्द्रगुप्त विध्यालंकर - Chandragupt Vidhyalankar

Add Infomation AboutChandragupt Vidhyalankar

लाला हरदयाल - Lal Haradyal

No Information available about लाला हरदयाल - Lal Haradyal

Add Infomation AboutLal Haradyal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
किया था | जरथुश्न का प्रादुभोव, कन्फ्यृंशस् की रिक्ञायें सुकरात के वातोलाप, मूसा को दस आज्ञायें और ইলা के पवेतीय उपदेश को सुनने से शताब्दियों पूव भगवान्‌ शिव ने शक्ति को अपने हाथ में लेऋर उसके वितरण द्वारा भारतोय एकता की आधारशिला रक्‍खी थी। देवो भागवत में कथा आतो है कि कतयुग में दत्त प्रजापति ने कमखल तीथे में एक बड़ा यज्ञ रचाया । उस यज्ञ में सब देवता और ऋषि बुलाये गये, परन्तु दक्ष ने शिवजी को नदीं बुलाया और 'कपाली' कहकर उनका अपमान क्िंया। यद्यपि शिव की पत्नी सती दक्ष की कन्या थी, परन्तु दत्त ने उसे भी कपाली की पत्नी जान कर नहीं बुलाया | सती आश्वय्य से सोचने लगी “दक्ष मेरे पिता हैं। उन्होंने मुझे क्‍यों नहीं बुल्लाया ?? इसका कारण जानने वह शंक्रर के पास गई ओर आदर से बोली--स्वामिन ! सुना है मेरे पिता के यहां यज्ञ है । सब . ऋषि-मुनि गये हैं, फिर आप वहां क्यों नशं गये ¢ महेश्वर बोल्े-“देवी ! तुम्हरे पिता मुम से बेर रखते हैं। जो देवता उन्हें मान्य हैं, वही यज्ञ में गये हैं। बिना बुलाये दूसरे के यहां जाने से तिरस्कार होता है। अत: मैंने न जाना ही उचित सममा |” सती बोली-- हे शह्छुर ! में अपने पिता के भाव को जानने के लिये यज्ञ में जाता चाहती हूँ । आप मुके वहां ने की आज्ञा दं) शिवज्ञी बोले--“देवि ! यदि तुम्डारी ऐसी ही रुचि है तो, हे सुत्रते ! तुम मेरे वचन से वहां शीघ्र जाओ 1% सतो को यज्ञ में देखकर दक्ष ने उसका कुछ भी आदर नहीं किया। अपमानित हुई सती अपने पिता से बोली- तात ! जिसकी कृपा से चराचर ॒पविच्र हो जाता दहै, उस शङ्कर को आपने यज्ञम कां नक्ष बुलाया ? सती के वचन सुन कर दत्त क्रो से बोला-- भद्दे | तू यहां क्‍यों आई ? तेरा यहां क्या ग्यारह




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now