संख्या - फिलोसोफी | Sankhya-philosophy
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
229
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)৪ भाषानुवाद ।
दुःख टूर करनेवाले पदार्थ रहते हैं तो भी इन उपायोंसे दुःख
की सत्ता कदापि नष्ट नहीं हो सकती जब सत्ताहो बनी रहो
तो दुःखसे छुटनाही क्या हुआ ? अतणएव प्रमाण कुशल बुद्दि-
मानोंको ऐसा पुरुषाथ कदापि ग्रहण करने योग्य नहीं है
किन्तु सवंधा त्यागने योग्य है ॥ ४ ॥
उत्कर्षादपि मोचस्य सर्वोत्कषश्ुुतें: ॥ ५॥
पूर्वोक्ष उपायोंसे सुखकी प्राप्तिके लिये यत्न करना व्यर्थ है
क्योकि श्रन्य सुख कज्षणस्थायी है और मोक्ष सुखको सब उत्क्णे
(ऊ'चे) सुखों सेभो अधिक उत्कष श्रुतियोंनेभी माना है जसे '“आत्म-
साभाव्र परं लाभं विद्यते आत्मलाभकों वराबर टूसरा कोईभी
लाभ नहीं है। अब यहां पर यह शट्ढा होतो है कि मोक्ष-
सुखो सवे उत्तम है इसमें क्या प्रमाण है ॥ ५॥
अविशेषश्वोभयो: ॥ ६ ॥
यदि मोक्षकोी सबसे उत्तम न कहा जाय तो अन्य सुख और
मोक्ष सुख दोनोंमें अविशेषता अर्थात् समानताही रहो अब रहा
यह सन्देह कि सोक्ष (छुटना) कहनेसे यह प्रतोत होता है कि
पहिले बडथा तो वह्द बन्धन खभावसे है वा किसो निमित्तसे *
यदि खभावसे है तो बन्चन कदापि नष्ट नहीं होगा, और जो
किसौ निमित्तसे हे तो उस निमित्तके नाश होजाने पर बन्धन
भो भवश्य छूट जावेगा, फिर मोक्षके लिये यत्र करना व्यर्थ
होगा अतएव दस शशड्धामें पिले सभावे बन्धन माननेमें
दोष कहते है ॥ ६ ॥
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