वीरोपाख्यान | Veeropakhyan

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Veeropakhyan by चन्द्रशेखर शास्त्री - Chandrashekhar Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ वीरोपाख्यान न पीजी फनी जी नी जीजा ता. कि खड़ा हुआ । वह युधिष्ठिर का स्वतः सिद्ध हक़ देना नहीं चाहता था । पाण्डवों ने उसका सामना किया । पाण्डवां के बल कहिए, शक्ति किए, जो कुदं कहिए वह्‌ सव अजेन थे । अजुन ने युद्ध किया रौर वे विजयी हृए । राजा हुए युधिष्ठिर । राम और अजैन दोनों का जीवन साहसिक कार्यों का जीवन है, इन दोनों ने अपने जीवन में सदा खतरे के काम किये हैं. पर अपने लिए नहीं दूसरों के लिए। अपने लिए ये सदा पराक्रम शुन्‍्य रहे हैं। आगे इनका संक्षिप्त परिचय दिया जाता है। कृपाकर ध्यानपूवंक विचार देखिए इनमें कोन बड़ा वीर था और कृपाकर यह भी इनकी जीवन घटनाओं में ढूंढ़िए कि इनकी सफलता का बीज क्या है, रहस्य स्या है । युद्धवीर भगवान्‌ रामचन्द्र ध्ष्वाकु वंशीय राजाओं की राजधानी होने का सोभाग्य अयोध्या नगरी को बहुत दिनों से मिला है । इस वंश में बड़े बड़े प्रतापशाली राजा हो गये हैं। राजा दशरथ भी बड़े प्रतापशाली थे । उनके समय में अयोध्या की प्रजा सब प्रकार से सुखी ओर समृद्ध थी। प्रजा का सुखी होना राजा के बढ़े मंगल और गौरव की बात है । राजा दशरथ को वह गौरव मिला था। সপ সতী সিল সি লে সি সিল সিসি




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