तेरापंथ आचार्य चरितावली खंड 1 | Terapantha Acharya Charitavali Khand 1

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Book Image : तेरापंथ आचार्य चरितावली खंड 1 - Terapantha Acharya Charitavali Khand 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १३ उदयापुर श्रायें नम्यो, हिद्दृुपति हरप सहीत। उपगमार हुवो त्यां ग्रति घणो, जाणे चौथा भरारा नी रीत१ ॥ आचाय श्ची ने मुनि श्री हेमराज को मेजना अपने पघारने के वरावर दरी माना । आमेट के अन्तिम चातुर्मास के बाद जव आप कांकड़ोरी पघारे त आचार्यं ऋषि रायचन्दजी स्वयं संतो कं साथ आपकी अगवानी के लिए गये | यह चरम सम्मान था : चमं चौमासो उतस्यो, विहार कियो तिणवार । विचरत विचरत भ्राविया, कांकड़ोली लहर मञ्चार। प्रम पूज्य सुण हपिया, संत घणा ले संग) ভালা श्राया हेमनं, ভনলী घणो उमंग) बे कर जोडी वन्दना करे, देखे वहु আ্লনুল্য । नर नारी हर्ष्या घणा, पाम्यां म्रधिक भ्राणन्द२ ॥ आचार्य श्री देहान्त के पूर्व नहीं पहुंच सके। दो मुहूर्त बाद में पहुंचने पर उन्होंने जो उद॒गार व्यक्त किये वे ऊपर दिये जा चुके हैं। वे उद्गार भी इसी भावना के प्रतीक हैं । स्वगंवास के बाद आपने मुनि श्री जीतमलजी को 'हेम नवरसो” लिखने का आदेश दिया ; परमपुज्य जीत ने कल्यो हो, करो नवरसो सार) इम पुज्य तणी प्राज्ञा थक हो, नोख्यो हेम नवरसो उदार ॥ इन पंक्तियों से भी उसी भावना की अभिव्यक्ति होती है। सं० १८८१ में आचार्य श्री रायचन्दजी ने आपके आहार के विषय में पांती का हिसाब उठा दिया । यह भी महती कृपा का ही कारण था। (१२) तपस्वी जीवन : आपका जीवन बडा तपस्वी था । सं० १९५६ के चातुर्मास में आप स्वामीजी के साथ थे । आपने चातुर्मास भर एकान्तर तपस्या की । आपके तपस्वी-जीवन की की जयाचायं के शब्दों मे इस प्रकार है: १--तेरापंथ आचाय चरितावछि ८ द्वि° ख० >) : आचार्य भारीमाख्जी रो बखाण ५. दोहा ७, ८ इस घटना का उल्लेख हेम नवरसो ५. ४६-४७ में इस प्रकार मिलता है : उदियापुर धर्म उजासो रे संततरे कियो चौसासो रे। दिन्दुपति इवो अधिक हुछासो ॥ भीमसिह भक्ति हद्‌ कीधी रे नमस्कार व॑दणा प्रसिद्धि रे। विण सूं हुई घणी धर्म वृद्धि ॥ २--हेम नवरसो : ८ दोहा १-३ ३--हेसम नवरसो : ६. ११४ ४--हेम नवरसो ५.६६




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