मनोरंजन पुस्तकमाला 15 | मनोरंजन पुस्तकमाला 15
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
251
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ८ |
चाहिए । बिना इसके हमारे जीवन का उद्दश्य कभी सफक्ष दो
नहों हे! सकता । हम न ते। कभी सुखी हो सकते हैं श्रेर न
म्वतंत्र । खुख और स्वतंत्रता प्राप्त करने कं लिये हमं दूरदर्शी,
विचारी श्रौर मितव्ययी होना चाहिए और अपनी इ द्वियों को
वश में रखना चाहिए। यही नहीं बल्कि नन््यायवान् या उदार
दाने के लिये भी हमें इन्हीं बातों की आवश्यकता होती है ।
जा अपनी इंद्रियों का वश में नहीं रख सकता वह कभी मित-
व्ययी नहों हो सकता। अर्थात् सब प्रकार के सद्गुणो का
मूल मितव्यय और मितव्यय का मूल्मंत्र आत्म-संयम है ।
इस पुस्तक में इन्हों कई बातों का विशद रूप से वशंन
क्रिया गया है श्रौर मितन्यय से दहानेवाल्ते लाभ तथा अमित-
व्यय से होनेवाले दोष समार गए हं । मूल लेखक ने अपनी
भूमिका में कहा हे--“यह पुस्तक इस उदेश्य से लिखी गॐ
है कि इसे पढ़कर लोग अपने उपाजित किए हुए धन को केवल्ल
अपने मजे के लिये नष्ट न कर दे वरन् उसका सदुपयोग करना
तथा उसे भले कार्मा में लगाना सीख, लेकिन इस रिक्ता का
ग्रहण करने तथा उसके अनुसार काये करने में आलस्य, अवि-
चार, श्रहंकार, दुरुण आदि श्रनेक शत्रओं का सामना करना
पड़ता है ।” उद्देश्य बहुत ही साधु है और उसकी सिद्धि के
लिये यथासाध्य उद्योग करना प्रत्येक विचारशील मनुष्य का
परम कत्तव्य रै । लेखक का परिश्रम तभी सफल समभना
चाहिए जब कि यह उदश्य अली भांति सिद्ध हा।
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