मनोरंजन पुस्तकमाला 15 | मनोरंजन पुस्तकमाला 15

मनोरंजन पुस्तकमाला 15 by श्यामसुन्दरदास - Shyaam Sundardas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ८ | चाहिए । बिना इसके हमारे जीवन का उद्दश्य कभी सफक्ष दो नहों हे! सकता । हम न ते। कभी सुखी हो सकते हैं श्रेर न म्वतंत्र । खुख और स्वतंत्रता प्राप्त करने कं लिये हमं दूरदर्शी, विचारी श्रौर मितव्ययी होना चाहिए और अपनी इ द्वियों को वश में रखना चाहिए। यही नहीं बल्कि नन्‍्यायवान्‌ या उदार दाने के लिये भी हमें इन्हीं बातों की आवश्यकता होती है । जा अपनी इंद्रियों का वश में नहीं रख सकता वह कभी मित- व्ययी नहों हो सकता। अर्थात्‌ सब प्रकार के सद्गुणो का मूल मितव्यय और मितव्यय का मूल्मंत्र आत्म-संयम है । इस पुस्तक में इन्हों कई बातों का विशद रूप से वशंन क्रिया गया है श्रौर मितन्यय से दहानेवाल्ते लाभ तथा अमित- व्यय से होनेवाले दोष समार गए हं । मूल लेखक ने अपनी भूमिका में कहा हे--“यह पुस्तक इस उदेश्य से लिखी गॐ है कि इसे पढ़कर लोग अपने उपाजित किए हुए धन को केवल्ल अपने मजे के लिये नष्ट न कर दे वरन्‌ उसका सदुपयोग करना तथा उसे भले कार्मा में लगाना सीख, लेकिन इस रिक्ता का ग्रहण करने तथा उसके अनुसार काये करने में आलस्य, अवि- चार, श्रहंकार, दुरुण आदि श्रनेक शत्रओं का सामना करना पड़ता है ।” उद्देश्य बहुत ही साधु है और उसकी सिद्धि के लिये यथासाध्य उद्योग करना प्रत्येक विचारशील मनुष्य का परम कत्तव्य रै । लेखक का परिश्रम तभी सफल समभना चाहिए जब कि यह उदश्य अली भांति सिद्ध हा।




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