श्री व्याख्यान रत्नमाला | Shri Vyakhyan Ratnamala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ছু. व्याख्यान रलमाला ॥ बात कहँँगा, आजकल की ख्ियों की रसोई बनाने में बडाभारी कृष्ट मादूम होता है जिनको द्रव्य की कुछ अनुकूलता হই জি হাহ उन्होंने रसोय्या रखालिया और स्वयं सायकल १२ चढना, उपन्यास पटना तथा इसी टङ्क के ओर २ अनुप्योगी व्यवसाय में अपना समय व्यतीत करने रूग गईं, मेरी अद्वेय भगिनियों ! यह बात स- नातनधमं मयोदा के विरुद्ध है, आपसे अधिक क्या कहू साक्षात्‌ द्रोपदी ओर जानकी जो सा्वभोम राजाओं की रानियें थीं, वेभी अपने पाते ओर ब्राह्मणाकेलिये अपने हाथक्ते भोजन बनाती थीं ठनके आगे आप क्या चीज ह { आपका देश्यं, आपकी दोरत, आपकी नजाकत उनके सामने क्या योग्यता रखती है. जब वे स्वये पाक बनाती थीं तक ®, ०, कम. क्या आप अपने पति के लिये रसोई नहीं बना सकतीं ! मेरा विनयपूर्व- क्‌ आपसे इतनाही कहना है कि आप अधिक नहीं तो अपने पति ओर« आह्मणोके लिये स्वयं पाक बनाया कीजिये औरों के लिये चाहे भटेही रसोइये पाक बनावें आप केसाही पाचक रखिये उसके भोजन से पति को वह्‌ तपि, वह सन्तोष नहीं होसकता है जो पली के बनाये भोजन से होगा, अन्तमं मने जो कुछ संक्षेप से अपने विचार आपके सामने कहे हे उनका अच्छातरह्‌ स्मरण रखकर यादि उनके अनुसार आप बत्ताव करेंगी तो आपका इस लोक में तथा परलोक में कल्याण होगा आर हिन्दू समाज की प्राचीन कीर्तिं समाचार में सास्थित रहेगी ॥ बम्ब १२८ । १९०४




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