हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय | Hindi Kavya Me Nirgun Sampraday

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Hindi Kavya Me Nirgun Sampraday  by पीतांबरदत्त बड़थ्वाल - Pitambardutt Barthwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ध ) हैम संगुणोपासना के स्थल रूपों जैप्ते मूत्तियों तथा भ्रवतारों भादि के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने के विरोध के कारण ही निर्गुणी कहू सकते ह । यहाँ पर यह भी उचित जान पड़ता है कि “निर्गुणा संप्रदाय की विभिन्नता हम, हिंदी काव्य के उन दो अरन्य संप्रदायों के साथ भी' समभ लें जो कुछ मात्रा तक इसके समान हें भ्रौर जिन्हें निरंजनी* तथा सूफ़ी संप्रदाय कहते हैं (इनमें से पहला तत्वतः हिंदू है और दूसरा इस्लामी है । ये दोनों निर्गुण संप्रदाय से इस बात में भिन्नहें कि ये (नया हलक এ সদ कभा जानसि नहि कस.कथति श्याना | हम निगेण तुम सरगुन जाना ।। कबोर अंधावज्ञी, एू० १३० । निगेन मत सोद वेद्‌ को अंता । बरह्म सरूप श्रध्यातम संता ॥ गुलाब, ( म० वा०, ए० ११४ )। खट द्रसन को जीति जियो है। निरयुन पंथ चलाये नाम जो कीर कषाये ॥ पंथ शब्दावन्नी (हण जि० ) सें किसी सुरत गोपाक्त कै ध्रनुयायौ का कथन । “निरंजनी संप्रदाय के प्रसुख कवि;--अनन्ययोग के रचग्रिता हमब्ध- दास (ज० सन्‌ ११४८) निपट निरंजन (संत सरसी, निर्जन संप्र इत्यादि के रचयिता) (ज ० सन्‌. १५६३) मगवानश्रास निर ननो ( प्रेमपदा्थ वे अम्रतधारा के रचयिता ) आविर्भाव काज सम्‌ १६२९ ३ हस संप्रदाय के सम्बन्ध में अभी तक वस्तुतः कु भी नहीं किया गया है। इस संबंध में डॉ० बद्ध्वाल का एक झल्षण लेख उनके निबन्ध संग्रह में देखिये । *.. सम्पादक | “सूफियों के लिए पं० रामचन्द शुक्र का हिंदी साहित्म का हृतिहास (ए० ६४, ११६) (तथा प्रस्तुत गंध के १७ से १० तक) पृष्ठ देखिये ।




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