विश्व - संस्कृति का विकास | Vishv - Sanskriti Ka Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ४ 1 जाय; उसी से संतोष करना है। सेकड़ों हज़ारों वर्ष तक मनुष्य भी शिकार के सहारे या कंद-मूल-फल खाकर अपना पेट भरता रहा, परेतु उसे इस जीवन से संतोष न था । न्य जीवों से श्रधिक कुश होने के कारण उसकी संख्या बढ़ती रही ; इसलिए शिकार के सहारे उसी जगह में आवश्यक भोजन मिलना डसे:कठिन मालूम होने लगा | तब उसने कुछ पशुओं को पकड़कर उन्हें पालना शुरू किया। पशुओं में गाय, बेल, भेड़, बकरी, ऊंट, हाथी, गंधा, खचर ओर घोड़ा अधिक उपयोगी साबित हुए | गाय, बेल, भेड़, बकरी को पालकर उनके दूध और मांस से उसने अपना पेट पाला ओर ऊंट; हाथी, गधा, खच्चर ओर घोड़े से उसने सवारी का काम लिया । हाथी बहुत बड़ा जानवर है; इसलिए वह मनुष्य के बस में बहुत बाद में आया। पशुओं को पालकर भी मनुष्य को चेन नहीं मिली । पले हुए पशु रक्षा मिलने के कारण बहुत शीघ्र बढ़े और उनके लिए चारे की कठिनाई होने के कारण उसे एक जगह से दूसरी जगह जाने की आवश्यकता पड़ने लगी | पशुओं के लिए जल की बहुत आवश्यकता थी। प्राकृतिक जल नदियों के किनारे ही था। इसलिए प्राचीन काल में मनुष्य की षस्तियाँ नदियों के किनारे ही थीं । धीरे-धीरे प्राकृतिक चारे के अतिरिक्त मनुष्य ने पशुओं के लिए चारे को पेदा करने का प्रबंध किया । इस प्रवंध के सिलसिले में चारे से ऐसे बीज उसे मिले जिन्हें लेकर वह अपना पेट पालने का प्रबंध कर सका | खेती की बुनियाद पड़ी | खेती शुरू करने के पहले मनुष्य का अपना कोई घर नथा। उसे अपना घर फ़सल के हिसाब से बदलते रहना पड़ता था। वह खानेबदोश था, परित्राजक था | खेती शुरू करते ही वह धर बनाकर वसने लगा! समाज की बुनियाद पडी। सभ्यता के प्रारंभिक काल में नदियाँ ह्वी आने जाने का सबसे सुगम मागं बताती थीं । उबडखायष् जमीन श्रौर जंगल की कोई




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