अचल मेरा कोई | Achal Mera Koi
श्रेणी : पत्रकारिता / Journalism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
301
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ चल मेरा कोटः
उनके पीछे मेले क्रुचले कपड़े पहिने कुछ देहाती स्त्री पुरुष खड़े थे--
वे गिरधारी और पश्चम की ओर टकटकी लगाए थे। “बाबू लोगों? पर
उनकी आंख कम जा रही थी। उनकी बगल में छोटी छोटी पोयलियां
थीं | किसी में घर की बनी पूढ़ी ओर किसी में बाज़।र की मिठाई । गिरधारी
और पश्चम ने भी उन देहातियों को देख लिया। परन्तु उनकी आांख
फिसल फिसल कर नगर के जन-समूह, नारियों की स्वच्छु आभा और
फूलों के सौन्दर्य पर जा रही थी ।
ददेश पर बलिदान होने का पुरस्कार है यह |! उनका मन कदं
रहा था।
अपने नातेदारों की बग़ल में पोटलियों को देखकर वे स्नेह মু भी
हो रहे थे, परन्तु स्वच्छु मनोहर साड़ियां पहिने हुए. लड़कियों के हाथ में
फूल मालाओं को देखकर वे कुछ ओर आगे की बात सोचने में देदातियों
की बग़ल वाली पोय्लियों को एक क्षण के लिए भूल जाते थे ।
भीनी भीनी सुगन्धि वाले वे सुन्दर फूल उन कोमल करों द्वारा गले में
पहिनाए जाने वाले हैं---परन्तु अचल ने इस कल्पना को झटका देकर
मन से हटा दिया | वह कल्पना केवल एक प्रश्न भीतर छोड़ गई--पहले
किसके गले में माला पढ़ेंगी !
पहले सुधाकर के गले में--अचल ने उत्तर दे लिया, और वह आगे
बढ़ते बढ़ते, धीरे धीरे पिछुलने लगा | सुधाकर ज़रा आगे निकल गया।
पुलिस की कतारे समाम हुई | सुधाकर ने ज़रा सा पीछे मुड़कर देखा |
अचल मुस्कराता हुआ। धीरे धीरे श्रा रहा था। इतने में लड़के लड़कियों
ने दोढ़कर हार डालने शुरू करदिए । पहला हार सुधाकर के गले में पढ़ा ।
किर एक और, एक और । उसके पीछे अ्रचल था । कुन्ती विवध रङ्ग
के फूलों वाला हार लिए दौड़ी | अचल ने हाथ जोड़कर सर नीचा कर
लिया । कुन्ती नै लपक कर उसके गले में हार उाल द्विया । नमस्ते की)
अचल ने पूछा, (पढ़ना लिखना ठीक चल रहा है !?
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