जीवन - स्मृतियाँ | Jivan Smritiyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२४ जीवन-स्मृतियाँ हुआ । हफ़्ते में एक दिन सभा होती थी ओर अभिभावक गुरु- जनों की निगाह बचाकर किसी निजेन मेंदान में ही होती थी । यह जान लेना आवश्यक द्वे कि उन दिनों वहाँ साहित्य-चचा एक गुरुतर अपराध सें गिनी जाती थी। इस सभा में बीच-बीच में कविता-पाठ भी होता था । गिरीन सबसे अच्छा पढ़ता था, अत- एवं यह भार उसी पर था, मेरे ऊपर नहीं। पढ़ी जाने वाली कविताओं के गुण-दोपों पर विचार किया जाता था ओर उपयुक्त जँचने पर वे साहित्य-सभा की मासिक पत्रिका छाया? में प्रकाशित होती थीं। गिरीन एक ही साथ साहित्य-सभा का मन्त्री ओर छाया!” का सम्पादक ओर अंगुलि-मात्र' से अधिकांश रचनाओं का मुद्रक भी था।' ' 'साहित्य-सभा के सदस्यों में विभूति सबसे मेघावी था । जेसा वह अधिक पढ़ा-लिखा था, उसी तरह भद्र और बन्धु-वत्सल भी था ओर वसा ही समझदार समालोचक भी था । बचपन की लिखो मेरी कई पुस्तके नाना कारणों से खो गड हैं। अब तो सबका नाम भी मुमे याद नहीं है। केवल दो पुस्तकों के नष्ट होने का विवरण में जानता हूँ। एक थी अभियान!-- बहुत मोटी कापी पर स्पष्ट अक्षरों में लिखी हुईं। अनेक मित्रों के हाथों में घूमती-फिरती अन्त में जा पड़ी वह मेरे बचपन के साथी सहपाटी केदार सिह के हाथों में । केदार ने बहुत दिनों तक बहुत तरह की बातें कहीं, लेकिन परतक मुझे वापिस नहीं मिली । दूसरी पुस्तक दे--शुभदा । पहले युग की लिखी यह मेरी अन्तिम पुस्तक थी--अथात्‌ बड़ी दीदी', 'चन्द्रनाथ” तथा 'देवदास” आदि के बाद की ।




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