श्रीरामकृष्णवचनामृत भाग - 2 | Shriramakrishnavachanamrit Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
673
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ईश्वर-दर्शन के उपाय प्
नियाति শশী = = = ৯ পপ
श्रीरामकृष्ण ने मणि को तर्क-विचार करने से मना किया है।
श्रीरामकृष्ण (राखाल से )-ज्यादा तर्क-विचार करना अच्छा
नहीं। पहले ईश्वर है,फेर संसार। उन्हें पा लेने पर उनके संसार के
सम्बन्ध में भी ज्ञान हो जाता है।
(मणि ओर राखाल से )-“यदु॒ महिक से बातचीत करने पर
उसके कितने मकान हैं, कितने बगीचे हैं, कम्पनी के कागजात कितने
हैं-यह सब समझ में आ जाता है।
“ इसीलिए तो ऋषियों ने वाल्मीकि को मरा-मरा” जपने के लिए
उपदेश दिया था। इसका एक विशेष अर्थ है। “म” का अर्थ हे ईश्वर
ओर “रा? का अर्थ संसार,-पहले ईश्वर, फिर संसार।
“४ कृष्ण किशोर ने कहा था, (मरा-मरा › शुद्ध मन्त हे; क्योकि यह
ऋषि का दिया हुआ हे। (मः अर्थात् ईश्वर ओर “रा? अर्थात् संसार।
“४ इसीटिए वाल्मीकि की तरह पहले स कु छोड़कर निजन में
व्याकुल हो रो-रोकर ईश्वर को पुकारना चाहिए। पहले आवश्यक है
ईश्वर-दर्शन। उसके बाद है तर्क-वेचार-शासख्त्र और संसार के सम्बन्ध में।
५५८ माणि के प्रति )-इसीरिए तुमसे कहता हू, अव ओर अधिक तर्क-
विचार न करना। यही बात कहने के लिए में झाऊतल्ले से उठकर आया हूँ।
ज्यादा तर्क-विचार करने पर अन्त में हानि होती है। अन्त में हाज़रा
की तरह हो जाओगे। में रात में अकेला रास्ते पर रो-रोकर टहरुता ओर
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कहता था, माँ, मेरी विचार बुद्धि पर वन्न प्रहार कर दो।'
“ कहो, अब तो तर्क-विचार न करोगे १
माणे--जी नहीं।
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