श्रीरामकृष्णवचनामृत भाग - 2 | Shriramakrishnavachanamrit Bhag - 2

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Shriramakrishnavachanamrit Bhag - 2 by श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ईश्वर-दर्शन के उपाय प्‌ नियाति শশী = = = ৯ পপ श्रीरामकृष्ण ने मणि को तर्क-विचार करने से मना किया है। श्रीरामकृष्ण (राखाल से )-ज्यादा तर्क-विचार करना अच्छा नहीं। पहले ईश्वर है,फेर संसार। उन्हें पा लेने पर उनके संसार के सम्बन्ध में भी ज्ञान हो जाता है। (मणि ओर राखाल से )-“यदु॒ महिक से बातचीत करने पर उसके कितने मकान हैं, कितने बगीचे हैं, कम्पनी के कागजात कितने हैं-यह सब समझ में आ जाता है। “ इसीलिए तो ऋषियों ने वाल्मीकि को मरा-मरा” जपने के लिए उपदेश दिया था। इसका एक विशेष अर्थ है। “म” का अर्थ हे ईश्वर ओर “रा? का अर्थ संसार,-पहले ईश्वर, फिर संसार। “४ कृष्ण किशोर ने कहा था, (मरा-मरा › शुद्ध मन्त हे; क्योकि यह ऋषि का दिया हुआ हे। (मः अर्थात्‌ ईश्वर ओर “रा? अर्थात्‌ संसार। “४ इसीटिए वाल्मीकि की तरह पहले स कु छोड़कर निजन में व्याकुल हो रो-रोकर ईश्वर को पुकारना चाहिए। पहले आवश्यक है ईश्वर-दर्शन। उसके बाद है तर्क-वेचार-शासख्त्र और संसार के सम्बन्ध में। ५५८ माणि के प्रति )-इसीरिए तुमसे कहता हू, अव ओर अधिक तर्क- विचार न करना। यही बात कहने के लिए में झाऊतल्ले से उठकर आया हूँ। ज्यादा तर्क-विचार करने पर अन्त में हानि होती है। अन्त में हाज़रा की तरह हो जाओगे। में रात में अकेला रास्ते पर रो-रोकर टहरुता ओर ৫২২৪ भ (সি তি कहता था, माँ, मेरी विचार बुद्धि पर वन्न प्रहार कर दो।' “ कहो, अब तो तर्क-विचार न करोगे १ माणे--जी नहीं।




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