मानवता के मूल सिध्दान्त | Manawata Ke Mool Shidhdant

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Manawata Ke Mool Shidhdant by देवकी - Devki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मानवता के मृं सिद्धान्त १५ हो सकती जब तक सुखियों और दुःखियों में अभिन्नता न हो जाय । अब यदि कोई यह कहे कि भला बेचारा दुःखी क्या त्याग करेगा ? तो यह्‌ कहना होगा कि जिसकं अभाव से दुःखी दुःख भोग रहा हं, यदि उसकी वासना का त्याग करने में समर्थ हो जाय तो भयंकर से भयंकर दुःख अपने आप मिट जाता है, जिसके मिटते ही सुख-दुःख से अतीत के जीवन में प्रवेश हो जाता है । प्राकृतिक नियम के अनुसार त्याग से उदारता और उदारता से त्याग की पुष्टि होती है। कोई भी सुखी पर-दुःख से दुःखी हुए बिना करुणित नहीं हो सकता और करुणित हुए बिना सुख-भोग को रुचि का नाश नहीं हो सकता, क्योंकि करुणा का रस सुख- भोग की रुचि से कहीं मधुर और सरस है । सुख-भोग की रुचि का अन्त होने पर ही बेचारा सुखी, सुख को दासता से मुक्त हो सकता ह । इस दृष्टि से यह निविवाद सिद्ध हो जाता है कि दुःखी का कत्तेग्य हें त्याग और सुखी का कत्तेंव्य सेवा। सर्वाश में तो कोई व्यक्ति केवल सुखी अथवा केवल दुःखी होता नहीं। अतः जिस अंश में प्राणी दुःखी हो उस अंश में त्याग और .जिस अंश में सुखी हो उस अंश में सेवा को अपनाकर सुख-दुःख से अतीत के जीवन का अधिकारी मानव मात्र हो सकता हे । समस्त विश्व एक जीवन है। यही भौतिक दर्शन की




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