जैनपदसंग्रह भाग ३ | Jainpadsangrah Volume-3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तृत्तीयभाग | ९
४ १॥ मिर-सिर दिवेला जोइया, चहुँदिशि
वाजे पौन । वलंत अचंभा मानिया, बुंझ्मत अ-
चेभा फोन ॥ जगमें० ॥ २॥ जो छिन जाय सो
आयुमे, निशि दिन हके काल । बांधि सके तो
है भला, पानी पहिली पाल ॥ जगमें ०) ३॥ मनुष-
देह दुलेम्य है, मति चूके यह दाव। भूधर रीजुल-
: कतकी, शरण सिताबी आव ॥ जगमें० ॥ 9॥
१२, राग ख्याल |
/गरव नहिं कीजे रे, ऐ नर निपट गैँवार ॥
टेक ॥ झूठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि
ভীত रे ॥ गरव० ॥ १ ॥ के छिन सांझ सुहागरु
जोबन, के दिन जगमें जीजे रे ॥ गरव० ॥ २ ॥।
वेशा चेत विलम्ब तजो नर, बंध बढ़े तिथि छीजे
ই ॥ गरव० ॥ ३ ॥ भूधर पलपल हो है भारी,
ज्यों ज्यों कमरी भीजे रे ॥ गरव० ४ 9॥।
१३. राग ख्याङ ।
थांकी कथनी म्हि प्यारी खगे जी, प्यारी
१ दीपक। २ च्छे! ३ निट अवे ९ श्रीनेमिनाथकी ।
'५ जीवेंग 1 ६ जल्दी । ७ आय |
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