जैनपदसंग्रह भाग ३ | Jainpadsangrah Volume-3

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Jainpadsangrah Volume-3 by भूधरदास जी - bhudhardas ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तृत्तीयभाग | ९ ४ १॥ मिर-सिर दिवेला जोइया, चहुँदिशि वाजे पौन । वलंत अचंभा मानिया, बुंझ्मत अ- चेभा फोन ॥ जगमें० ॥ २॥ जो छिन जाय सो आयुमे, निशि दिन हके काल । बांधि सके तो है भला, पानी पहिली पाल ॥ जगमें ०) ३॥ मनुष- देह दुलेम्य है, मति चूके यह दाव। भूधर रीजुल- : कतकी, शरण सिताबी आव ॥ जगमें० ॥ 9॥ १२, राग ख्याल | /गरव नहिं कीजे रे, ऐ नर निपट गैँवार ॥ टेक ॥ झूठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि ভীত रे ॥ गरव० ॥ १ ॥ के छिन सांझ सुहागरु जोबन, के दिन जगमें जीजे रे ॥ गरव० ॥ २ ॥। वेशा चेत विलम्ब तजो नर, बंध बढ़े तिथि छीजे ই ॥ गरव० ॥ ३ ॥ भूधर पलपल हो है भारी, ज्यों ज्यों कमरी भीजे रे ॥ गरव० ४ 9॥। १३. राग ख्याङ । थांकी कथनी म्हि प्यारी खगे जी, प्यारी १ दीपक। २ च्छे! ३ निट अवे ९ श्रीनेमिनाथकी । '५ जीवेंग 1 ६ जल्दी । ७ आय |




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