हिंदी - गीता | Hindi - Geeta

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Hindi - Geeta by हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा झध्याय ६ गया न आया; स्थिर है; पुराण; ' .मरे न. देही वदि देह मारे ॥ र० ॥ जो इसे जानता नित्य, श्रज,; श्रव्यय, शाश्वत । मारे चदद किसें, केंसे, मखावे तथा कहो ! ॥ २१ ॥| उतारके व्ल्र फूटे-पुराने, ... लेता नये श्रन्य मनुष्य लेसे | '. तैंसे 'जीय ' हुए शरीर, '. लेता रहे देह मवीन श्रात्मा ॥ २२ ॥ इसे शस्त्र नहीं काटे; नहीं श्रधि जला सके | मिगो सके नहीं पानी, नहीं वायु सुखा सके ॥ २३ ॥ न जले, न कटे थ्रात्मा, सूखे, भीगे नहीं यह । ' दैं. नित्य, स्थिर, निश्चल, शाश्वत ॥ २४ ॥ ' इसे अचिन्त्य, श्रव्यक्त, निर्विकार कहा, अतः के इसका रूप शोक-योग्य नहीं तुर््दें ॥ २४. ॥ मान ल॒ यदि श्रात्मा को जन्म-मृत्यु प्रतिक्षण ! तथापि सोच का कोई कारण है तुम्हें नहीं ॥ २६ ॥ - जो जन्मा सो मरेगा ही, मरे का जन्म निश्चित । शत निश्चित भावी का व्यर्थ सोच करो नहीं ॥ २७ || भूतों का आदि श्रव्यक्त,.. मध्य है व्यक्त भासता | - अन्त भी फिर श्रब्यक्ल, सोच क्या उसका करें ॥ २८ ॥| . “झाश्चय-सा दे कुछ “ को दिखाई; “ाश्वयं-सां अन्य करें बखान 1




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