आचार्य तुलसी की साहित्य सम्पदा (भाग - 1 ) | Acharya Tulsi Ki Sahitya Sampada (bhag-1)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वकीयम्‌ | “साहित्य आत्मा की अनुभूतियो का रहस्य खोलने वाली अद्भूत कूजी है ।* जयशंकर प्रसाद का उपरोक्त कथन सत्य ही नही, अक्षरण सत्य ই । साथ दही युगधारा को मौडने तथा सभ्यता-सस्कृति को प्राणवान्‌ बनाए रखने मे भी साहित्य का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । जिस समाज व राष्ट्र का साहित्य जितना विशद एवं समृद्ध होता है, वह समाज एवं देश उतना ही प्रकाशमान होता है। पाठक की अन्तश्चेतना को भकभोरने वाला ही महान्‌ साहित्यकार होता है । प्रेमचन्द ने साहित्यकार को दीपक की उपमादी है। जो स्वयं तप्त होकर भी दूसरों को निष्पृह एव निरलिप्त भाव से प्रकाश देता है । | আল্লা तुलसी एक ऐसे सुजनधर्मा साहित्यकार है, जिच्होने सामयिक सत्य को त्र॑कालिक समस्याभो के समाधान के रूप में अनुष्ठेय बनाकर जन-कल्याण का मागं प्रशस्त किया है। सत्य की साधना उनके साहित्य के कण-कण मे प्रतिविम्बित है, इसलिए यह साहित्य समाज और राष्ट्र की चेतना को भकभकोर कर उसे नया आलोक देने भें समर्थ है। निराशा, कुंठा एव नकारात्मक भावों से तो उनका दूर का भी रिश्ता नही है, बल्कि वे तो विधेयक भावो के पुरस्कर्ता है। यही कारण है कि उनके साहित्य के कल्पवृक्ष की सघन-शीतल छाया मे वैठकर सुख, शांति भौर आनद की अनुभूति की जा सकेती है। उस छाया के स्नेहिल और शीतल स्पशं से अशान्ति, उन्माद, दुःख भौर त्रास जसे तत्त्व विलीन हो जाते है। उनका साहित्य जितना सरल एव सुबोध है, व्यक्तित्व उतना ही अगम्य, अकथ्य, अलौकिक एव अनिवंचनीय है । लाखों लोगो की भक्तिभरी श्रद्धा प्राप्त करते पर भी वे स्वय को मानव ही मानते है तथा मानव को सही मानव बनने का उपदेश देते है । उनकी यह उदग्न अभीष्सा है कि भारत फिर एक बार विश्व गुरु के रूप मे प्रतिष्ठित हो । प्राचीन काल की भाति पनः अध्यात्म की दीक्षा प्राप्त करने विदेशी यहां आएं और प्रेरणा प्राप्त करे । इसके लिए वे भारतीय जनो को प्रेरणा देते रहते दै--अणुत्रतों के दारा अणुवमो की भयकरता का विनाश हो । अभय के द्वारा भय का विनाश हो और त्याग के द्वारा संग्रह का हास हो । ये घोष सभ्यता, सस्क्रेति और कला के प्रतीक बने और इस कार्य मे




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