श्री तीर्थकर चरित्र भाग 1 | Shri Thirthkar Charitar Bhag 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, (ई) | जँवू छीप के मदाविदेद चोजसे, क्षितिप्रतिष्ठित नाम को एक नगर श्रा | उख नगर मं विधि नाम का एक वैद रहता था 1 चजञ्जजंघ का जीव, सीधमे देचलोक का .आयुष्य पृण करके, इस विधि चेय के यहां पुप्ररूप से जमा, जिसका লাল জলা. ननन्‍्द्र रकखा गया | जीवानन्द, चच्रक से बहुत निपुण था। उधर श्रीमती का जीय भी, सोधम देचल्लोक का स्रायुष्य भोगकर, दसी स्ितिप्रतिष्ठित नगरः ये, एमवस्दत्त सेठ के মহা पररूप सं जम्मा । जीवानन्दे बेंच की, महिघर राजऊुमार,एक प्रधान का पुत्र, एक सेठ का पुत्र, ओर दो अन्य साहएकारों के पुत्रों से बड़ी मैनी शी । एक द्विन जीवानन्द्‌ वे के पाचों भित्र, जीवादन्यं वैद्यके . यष्ट चेरे थे । उसी समयः অর पर एकं तपोधन, किन्तु व्याधि- ` 'থিতিন सुनि पधरे। जीवानन्दः वैय श्रपने व्यवसाय मेँ लमा ` हरा था, दसल्तिप उसने एन मुनि की प्रर देखा भी नौ । यह देकर, मदिधर राकुमारन जीवानन्द्‌ ইন से कहा मित्र, तम रे स्वाधों जान पड़ते ऐो | जहाँ निःस्वाथ सेचा का अवसर होता एक उस और तुम ध्याव भी नहीं देते | योग्यता छोसे हुए भी) सेपकार-राहव जीदन के लाम सह्यस की बात के छततर में; लीयानन्द ने छदा कि झाप डीक ধরে ক, উকিল घड़े बनाइये फि्मेरे योस्य ऐसी জলা सेवा: दे ? सहिछर- ने सुनि द प्रोतः सक | च ध কি এটি ঘা পয जीयामन्द से শা লিঃ শপ © [ = ५ 17 | न.




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