श्री तीर्थकर चरित्र भाग 1 | Shri Thirthkar Charitar Bhag 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand), (ई) |
जँवू छीप के मदाविदेद चोजसे, क्षितिप्रतिष्ठित नाम को एक
नगर श्रा | उख नगर मं विधि नाम का एक वैद रहता था 1
चजञ्जजंघ का जीव, सीधमे देचलोक का .आयुष्य पृण करके,
इस विधि चेय के यहां पुप्ररूप से जमा, जिसका লাল জলা.
ननन््द्र रकखा गया | जीवानन्द, चच्रक से बहुत निपुण था। उधर
श्रीमती का जीय भी, सोधम देचल्लोक का स्रायुष्य भोगकर, दसी
स्ितिप्रतिष्ठित नगरः ये, एमवस्दत्त सेठ के মহা पररूप सं जम्मा ।
जीवानन्दे बेंच की, महिघर राजऊुमार,एक प्रधान का पुत्र,
एक सेठ का पुत्र, ओर दो अन्य साहएकारों के पुत्रों से बड़ी मैनी
शी । एक द्विन जीवानन्द् वे के पाचों भित्र, जीवादन्यं वैद्यके .
यष्ट चेरे थे । उसी समयः অর पर एकं तपोधन, किन्तु व्याधि- `
'থিতিন सुनि पधरे। जीवानन्दः वैय श्रपने व्यवसाय मेँ लमा `
हरा था, दसल्तिप उसने एन मुनि की प्रर देखा भी नौ । यह
देकर, मदिधर राकुमारन जीवानन्द् ইন से कहा मित्र, तम
रे स्वाधों जान पड़ते ऐो | जहाँ निःस्वाथ सेचा का अवसर
होता एक उस और तुम ध्याव भी नहीं देते | योग्यता छोसे हुए
भी) सेपकार-राहव जीदन के लाम सह्यस की बात के
छततर में; लीयानन्द ने छदा कि झाप डीक ধরে ক, উকিল
घड़े बनाइये फि्मेरे योस्य ऐसी জলা सेवा: दे ? सहिछर- ने
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