बनारसीविलास | Banarasivilas

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Banarasivilas by कस्तूरचंद कासलीवाल - Kasturchand Kasleevalभंवरलाल जैन - Bhanwarlal Jain

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भंवरलाल जैन - Bhanwarlal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ইশ = ही अलंकारमय दै । रेप और उपसा कवि के अत्यधिक प्रिय अज्षंकार थे-जिनका इस काव्य में स्थान, प्र उपयोग किया गया है। स्वयं वीर ने अपने काव्य जम्बूस्वामो चरिड को वीर एवं शृंगार रसात्मक कहा है । अपम्र श॒ मिश्रित हिन्दी काल-- , १३वीं १४वीं शताब्दी को हम अपभ्रश मिश्रित हिन्दी काल कह सकते हैं । यद्यपि इन दो शताब्दियों में अपश्र श में अत्यधिक साहित्य की रचना हुई किन्तु उसके साथ अपभश्र शमय हिन्दी रचनाये भी हमारे सामने आयीं। अपभ्रश भाषा के कवियों में महाकवि अमरकीतति, पं° लु, हरिभद्र, धाहिल, नरसेन, सिंह आदि उल्लेखनीय हैं । इनमें अमरकीरत्ति ने छक्कम्मोषएस, लावू ने जिणदत्तचरिय, हरिभद्र ने रेमिणाहचरिय, धाहित् ने प्रडमसिस्चिरिउ, नरसेन तरे बडढमाणकहा और सिरिपात्चरिउ तथा सिह ने पब्जुण्णकह् की रचना की थी। महाकषि अमरकीत्ति का छक्कम्मोवएस बहुत ही सुन्दर एवं सरल कान्य है । इस काव्य से सामान्य पुरुष के जीवन का चित्रण किया गया है। धाहिल्न का पउमसिरिचिरिउ भी सुन्दर काव्य है जो मुनि जिनविजयजी द्वारा सम्पादित होक प्रकाशित भी हो चुज है । जैसा कि पहिले कहा जा चुका है कि इस काल में जैन विद्वानों द्वारा हिन्दी भाषा में भी रचनाये शिखा जाना प्रारम्भ हो गया था। इसकाल की रची हुई हिन्दो रचनाओं में श्री धर्मेसूरि




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