जैनरत्न खंड 1 | Jainratna Khand 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
839
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विजयवल्लभसूरिजी महाराज - Vijayvallabhsuriji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(च)
है | आशा रखता हैँ कि ऊपरके वास्तविक खुठासेसे पुनर्विवाहकरे
प्रशपर्कीकों सत्य जाननेफ़ों मिलेगा, और वे अपने जीवनमें परिवत्तन-
कर शुद्ध अल्मचर्यक्री तरफ पूर्ण दत्तचित्त होकर सत्यक़े आहक
बनेंगे । अरतु |
अंतर्म इतनो नम्न सूचना करना उचित जान पड़ता है कि, एक
बार इन चरित्रेकों शुरूे आखिर तक जरूर पद जाना चाहिए।
सम्पूर्ण पदुनेफे बाद विचार स्थिर करने चाहिए। ऊपर ऊपर पढ़
नेसे पदनेग आनद नहीं आता है और कई बार मिथ्या कल्पनां मी
घर कर जाती हैं । ग्निश्वरोंक्े पुनीत चरित्र पढ़नेसे आत्माका
कल्याण हेता है यद बांत फिरसे कलनेफी जरूरत नहीं है।
श्रोयुत वमोनीने जैसे चौबीस तीर्थकरोंके हिन्दी भाषामें सुंदर और
उपयोगी चरित्र लिखकर प्रकाशित कराये हैं, बसे ही शेष ३५
महापुरुषोक़े चरित्र भी शीघ्र ही लिखकर प्रकशित करांबें ऐसी
मेरी साग्रह सूचना है।
चौबीस तीर्थकरोंके चरित्र छिखफ़र वमोनीने संस्तारपर और
खासकर हिन्दी समाजपर महान् उपकार किया है। इन चरित्रोद्ारा
उन्होंने साहित्यकी एक बहुत बड़ी कमीको पूरा किया है, इसके
लिए उन्हें धन्यवाद है।
कलिकाल सर्वज्ञ श्रहिमवद्रावार्यने संम्छतमं ‹ विपि शदटा-
का पुरुषचरिन ” नामका एक वडा सविस्तर अंथ ভিলা है । उसको
हो सुद्र লনা टठाइपेंमें, निर्णयस्तागरंके समान मुप्रस्तिद्ध ঈমাম
ऊँचे उत्यु काममोपर छपाना स्थिर किया गया है। पूज्यपाद प्रातर्मर-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...