जम्बूस्वामिचरितम | Jambuswamichritam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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No Information available about पं. जगदीशचन्द्र शास्त्री - Pt. Jagdish Chandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(८)
अमृतचन्द्रसूरिको स्मरण किया है । कविने इस छोटेसे प्रन्थमें आत्म-
ए्याति समयसारके ठंगपर अनेक छन्द, अलंकार आदिसे छुसजित
अध्यातमाख्की एक अति सुन्दर रचना करके सचमुच जैन साहि-
त्यके गौरवको वृद्धिंगत किया है ।
कवि राजमछकी इन चार कृतियोंमें, जेसा ऊपर कहा जा चुका
है, जम्बूखामिचरितकी रचनाबि० सं० १६३२ और ढाटीसंहिताकी
रचना बि० सं० १६४१ में ह्र् है । शेष दो प्रन्थोके समयके विषयमे
प्रन्थकारने स्वये कुर भी उख नहीं किया । परन्तु मादरम होता है
कविवी सवैप्रथम रचना जम्बृखामिचरित है, ओर् दसी रचनके
उपरे इन्होंने ‹ कवि › की प्रख्याति प्राप्त की | इसके बाद किसी
कारणस कविको आगरेसे वैराट नगरमे जाना पड़ा, ओर वयं जाकर
इन्होंने जम्बूस्थामिचरितके नौ वर्ष बाद काटीसंहिताका निर्माण
किया । जम्बूस्वामिचरितके कई पद्य भी छाटीसेहिताम अक्षरशः
अथवा कुछ परिवर्तनके साथ उपलब्ध होते हैं| पंचाध्यायी और
अध्यात्मकमलमार्त्ण्ड कविकी इन रचनाओंके बादकी ही कृतियाँ
जान पड़ती हैं ।माढ्म होता है जेसे जैसे कवि राज-
मछ अवस्था और विचारों प्रौढ होते गये; वैसे वैसे उनकी रुचि
अध्यात्मकी ओर बढ़ती गई । फठतः उन्होने अपने आत्म-कल्याणके
लिये इन दोनों ग्रन्थोंका निमोण किया | अब इन दोनोंमें संभव है
कि पंचाध्यायी पहिले बनी हों, और उसके संक्षिप्त सारको लेकर
१ १० जुगलकिशोरजीने लाटीसंहिता ओर पंचाध्यायीमें ४२८ समान प्यके
पाये जानेका उद्टैख अपनी उक्त भूमिकामे किया दै । इन पद्मोंका लाटीसंदिताम-
से ही उठाकर पचाध्यायीमे रक्खा जाना आधिक संभव जान पडता हे ।
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