मृगाड़कलेखा | Mrigadanklekha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुगाद़ु लेखा । ११
५ >
ह यक्षा मत में कद्दने छगा--“ झाज दिन भर झुग के पीछ
ने में व्यतीत हुआ जानपड़ना है रात भी इसी पवेत प्रान्त
की किली चट्टान पर व्यतीत होगी ”
इतने में एक হ্যা पास मं होकर निकलना कुत्ते उनके पीछे
दोड़ते हुए काड़ियो में घुल गए । युवा के मन में यद्द तरंग डठी
कि पहाड़ी के ऊपर चढ़कर देख कदायित किसी ओर दीपक या
झग्ति का चिन्द्र दिखाई पड़े या मार्ग का कुछ पता दाग जाय तो
कुछ भ्राश्चय नहीं । इल विचार में कुछ एसी साफढयता की झाशा
ज्ञान पड़ा कि वह खतरगोल का पीछा करने वाल्ले स्वानां को बिता
साथ मे ल्षिपद्दी ऊपर चढ़ने खगा | माग कठिन था; शरीर में थका-
बट थी; पर झाशा की माया भी झति दुस्तरदे | इसके खहारे অক
कष्ट भी खद्दज में स्वीकार कराजिप জাল ई | इसो झाशा के ख-
हारे यह बीर पहाड़ी की चोटी की तरफ लनेचगा। न्या ज्यो
वह ऊंचा होता जाताथा त्यों त्यो उ्को दूरकी जमीनकी अवस्या
दिल्लाई पड़ती थी | बढ़ी उत्कपठा ले वह दीपक की चमक को दे-
ফান को इभर चार। तरफ रृष्टिडालता चअत्य रहाथा पर दीपक की
जगह किसी जुगनू के भी दशन नर्द द्वोते थे
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पर भ्राश उसको भमी ऊपर लिय जारी दे । माशवान उ-
द्योग न्दी छोडता | ऊपर चदृकर उसको कुड देता | पर वहां
से दूर मालुम होता था । दीपक या अग्नि के दशन नहीं थे किंतु
पक भोज या सरोचर का झजुमान होता धा। अब कुछ दूर ओर
चढ़ा कील की मूर्ति बढ़ती हुई दिखाई दी जान पड़ा कि कोई
बड़ी भो दूर तक फेलती है उसके चारों झोर सघन वृद्ध छगे है ।
जितना वद्द ऊपर चढ़ता जाता उतनाही वह भीतर पास লাকা
हुई दृष्टिगोचर दोती यहां तक कि जब वह पहाड़ी की चोटो पर
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