जीवन और साहित्य | Jivan Aur Sahity

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५. वास्तव मे द्िवेदी-युग का प्रथम चरण आधुनिक हिन्दी कहानी का शेशवकाल है । इस काल मे कहानी के उपर्युक्त अविकसित रूप का विकास हुआ । सन्‌ १६०० ई. से प्रकाशित सरस्वती! में अनूदित एवं मौलिक कहानियों का नियमित प्रकाशन आरम्भ हआ। कला की दृष्टि से “इन्दुमती (१६०२ ई.), “ग्यारह वर्ष का समय (१६०३ ई.), दुलाई वाली ( ই.) আছি हिन्दी की आरम्भिक कहानियाँ हैं | इनमें छोटा-सा कथानक है, यथार्थवादी चित्रण है और हृदय को प्रभावित करने वाली संवेदना है । वीसवीं शताब्दी के प्रथम ददान्द तक हिन्दी-कहानी के शरीर और आत्मा में कोई क्रान्तिकारी कलात्मक परिवर्तन नहीं हमा था। दूसरे दशाब्द मे लिखित कहानियां अपने रचना-संगठन, मामिकता, भाव- व्यंजना आदि के कारण विशेष आकर्षक सिद्ध हुईं। जयशंकर प्रसाद की पहली कहानी श्रम १६११ ई. में इन्द' में प्रकाशित हुई। इस प्रकार कल्पना और भावुकता से पूर्ण छायात्मक कहानी का आरम्भ हुआ । १९१५-१६ ई. तक हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकारों का उदय हुआ, जिसमें विद्येप उल्लेखनीय हैं चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, वरन्दावनलाल वम, विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कोशिक, राजा राधिकाप्रसाद सिंह, चण्डीप्रसाद हृदयेश और प्रेमचन्द | इनको कहानियों में कहानी-कला की सभी विशेपताएँ---आकर्षक शीषंक, सुगठित वस्तु-विन्यास, उपयुक्त कथोपकथन, अनुरंजनकारी कृतूहल, स्वाभाविक चरित्र-चित्रण, मामिक भाव-व्यंजना, उह्‌ श्यपूर्ण संवेदना आदि-- एक साथ हँ । कानों में कंगना (सं. १९७० বসা राधिकारमण), उसने कहा थाः (चन्द्रधर शर्मा गुलेरी) ओर पंच परमेश्वर” (१६१३ ई.--प्रेमचन्द) हिन्दी-साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय कहानियों में गिनी जाती हैं । हिन्दी के कहानी-संसार में प्रेमचन्द्र का आगमन एक ऐतिहासिक घटना हैं | उनकी कहानियों में सामाजिक विपयों का उदार और यथार्थ चित्रांकन है। पात्रों के चरित्र का मर्मस्पर्शी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है। प्रौढ अन॒भव, हृढ़ आत्म-विश्वास, स्वाभाविक कथा-प्रवाह और जीवन की विवेकपूर्ण हृदयहारी व्याख्या है। हिवेदी-युग के अन्य कहानीकारों में




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